Madhya Pradesh

देश के हर व्यक्ति को सस्ता इलाज सिर्फ आयुर्वेद ही प्रदान कर सकता हैः मंत्री परमार

आरोग्यधाम में दो दिवसीय परम्परागत वैद्य सम्मेलन को संबोधित करते हुए आयुष मंत्री परमार

– आरोग्यधाम द्वारा दो दिवसीय परम्परागत वैद्य सम्मेलन का आयुष मंत्री ने किया शुभारंभ

सतना, 28 दिसंबर (Udaipur Kiran) । आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि भारत की परंपरा ज्ञान है, दुनिया ने ज्ञान का पेटेंट कराया और पैसा कमाया। किंतु भारत ने ऐसा कभी नहीं किया। हमारा सदैव यह मानना रहा है कि ज्ञान पर सबका अधिकार है अर्थात वह सार्वभौमिक है। उसका उपयोग प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण के लिए होना चाहिए। देश के हर व्यक्ति को सस्ता इलाज सिर्फ आयुर्वेद ही प्रदान कर सकता है।

मंत्री परमार शनिवार को दीनदयाल शोध संस्थान के स्वास्थ्य प्रकल्प आरोग्यधाम द्वारा उद्यमिता विद्यापीठ के लोहिया सभागार में परंपरागत वैद्यों के दो दिवसीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अनुसुइया आश्रम के संत पवन बाबा एवं अन्य अतिथियों के साथ भगवान धनवंतरी की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन के पश्चात कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ हुआ।

आयुष मंत्री परमार ने कहा कि भारत की परंपरागत चिकित्सा प्रणाली सबसे प्राचीन है, जिससे सभी ने अपनी-अपनी चिकित्सा प्रणाली विकसित की है। प्रकृति के निकट रहने के कारण भारत सदैव स्वस्थ रहा है। जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने देखा कि भारत की शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था समाज आधारित है, इसलिए यहां सभी शिक्षित और खुशहाल है। अंग्रेजों द्वारा ही सर्वेक्षण के दौरान यह पता लगाया गया कि उस समय शिक्षा एवं संस्कृति के आधार पर भारत की शिक्षा दर 80 से 92 प्रतिशत के आसपास थी। उस समय लगभग सात लाख गुरुकुल संचालित हो रहे थे, तो फिर आज हमें क्यों बताया जाता है कि हमारे पूर्वज अशिक्षित थे।

उन्होंने कहा कि प्रकृति में पाई जाने वाली प्रत्येक वनस्पति हमारे लिए उपयोगी है। उसके प्रति विश्वास एवं श्रद्धा होनी चाहिए। हमें सबसे पहले स्वयं पर विश्वास करना होगा तभी दूसरे हम पर विश्वास करेंगे। हर क्षेत्र में शोध की आवश्यकता है। जिससे भारत के विशाल ज्ञान को संपूर्ण विश्व को दिखाया जा सके। सम्पूर्ण शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा का समावेश करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। परंपरागत चिकित्सा पद्धति हमारी शान बनेगा, भारत के ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित करना होगा। अपनी धारणा में परिवर्तन करना होगा, भ्रांतियां हटाना होगा।

उन्होंने कहा कि परंपरागत ज्ञान आजीविका का संसाधन कैसे बने इसके लिए शासन प्रयत्नशील है। जिस ज्ञान का हम सदियों से उपयोग करते आ रहे हैं उसका सदैव प्रवाह बना रहे इसके लिए भारत सरकार इस दिशा में कार्य कर रही हैं। यह पद्धति सर्व समाज के कल्याण हेतु कैसे उपयोग हो इस पर चिंतन करना होगा।

इस अवसर पर डीआरआई के शोध शाला प्रभारी डॉ मनोज त्रिपाठी ने कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि परंपरागत वैद्यों द्वारा उपयोग किये जाने वाली पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से रोगों का उपचार करने वाले ज्ञान का डेटा-वेस तैयार करना है, जिससे उसका वैज्ञानिक विधि से परीक्षण एवं मानकीकरण का कार्य किया जा सके तथा इसकी वैश्विक स्वीकार्यता और नई दवाओं को विकसित करने के लिये एक मंच प्रदान करने की दिशा में प्रयास करना है।

आरोग्यधाम के वैद्य राजेन्द्र पटेल ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में वैद्यो द्वारा पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के ज्ञान की निरंतरता को बनाये रखना है जो बीमारी जिस क्षेत्र में होती है उसका इलाज भी वहीं स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होता है हमे सिर्फ उसकी पहचान करने की आवश्यकता होती है। हमारा कार्य कम दवा, कम पैसे व कम समय में लोगों को स्वस्थ रखना है। कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के 6 जिलों तथा उत्तर प्रदेश के 10 जिलों के प्रतिभागी प्रतिभाग कर रहे हैं।

(Udaipur Kiran) तोमर

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