Madhya Pradesh

जो भगवान के भरोसे है, निर्मल सच्ची भक्ति व पूर्ण समर्पित है वह सबको प्यारा ः  प्रेमभूषण  महाराज

प्रेमभूषण जी महाराज
कथा स्थल

अनूपपुर, 26 नवंबर (Udaipur Kiran) । मनुष्य मात्र की दिमागी कसरत है जाति-पाती के भेद। भगवान ने कभी भी, कहीं भी जात-पात भेद को बढ़ावा देने की बात नहीं कहीं है। श्रीरामचरितमानस में इस बात का बार-बार प्रमाण आया है। भगवान ने केवट,शबरी और निषादराज को जो सौभाग्य प्रदान किया जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भगवान कभी भी भगत में जात-पात का भेद नहीं देखना चाहते हैं। यह बात श्रीराम सेवा समिति अनूपपुर द्वारा आयोजित श्रीराम कथा के अष्टम दिवस मंगलवार को व्यासपीठ से प्रेमभूषण महाराज ने कहीं।

नौ दिवसीय रामकथा के अष्टम दिवस उन्होंने शबरी प्रेम की कथा सुनाते हुए कहा कि मां शबरी भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा कर रही हैं। गुरु मतंग ने शबरी से कहा था कि भगवान तुम्हारी झोपड़ी में आएंगे। गुरु आदेश से शबरी मॉ भगवान नाम का जप करती हुई संयम पूर्वक प्रतीक्षा कर रही हैं। जो भगवान के भरोसे है, निर्मल सच्ची भक्ति रखता है, पूर्ण समर्पित है। वह हमको – हम उनको प्यारे हैं। प्रभू कहते हैं कि मेरे दर्शन का फल अनुपम है। जीवात्मा भी परमात्मा है। रोना – धोना ,दुखी होना नहीं चाहिये। आनंद में रहिये। संग्रह की वृत्ति से हटकर जीने की वृत्ति अपनाइये। पुण्य करो, सत्कर्म करो, दान करो, जप करो, तप करो और इससे अपने जीवन की सच्ची पूंजी को बढाईये। अपने हाथ को पुण्य करो, दिव्य करो, पवित्र करो।

उन्होंने कहा कि भूल कर भी किसी को श्राप और आशीर्वाद नहीं देना चाहिए। आशीर्वाद देने से पुण्य नष्ट होता है। श्राप देने से स्वयं का अमंगल होता है। भगवान जीव का भला उसके सत्कर्मो के अनुरुप करते हैं। आपकी श्रद्धा, सेवा ,समर्पण,शीलता स्वत: आशीर्वाद प्राप्त करवा देता है। आशीर्वाद दिया नहीं जाता, स्वयमेव मिल जाता है। कल्पना जब यथार्थ स्वरुप लेती है तब क्रियाशीलता रुक जाती है। दर्द जब गीत में बदलता है, हार जब जीत मे बदलता है। क्या कहें उस आलम को, जब कोई प्रीत, मीत में बदलता है। धरती के किसी भी मनुष्य के लिए भगवान का गुणगान करने के लिए जाति और कुल का कोई महत्व नहीं होता है। हमारे सनातन सद्ग्रन्थों में यह बार-बार बताया गया है कि जो कोई भी चाहे प्रभु को जप ले और अपना जीवन धन्य कर ले। कोई भी गा ले, फल अवश्य मिलेगा। मनुष्य का पुनर्जन्म उसकी अपनी ही किसी एक ज्ञानेंद्रिय के विकारों के कारण ही होता है। हमारी पांच ज्ञानेंद्रिय हमको भटकाती रहती हैं। जब हमारी ज्ञानेंद्रियां भगवतोन्मुख होने लगती हैं तभी हमारा कल्याण होना शुरू हो जाता है। जब हम नित्य भगवत दर्शन करते हैं, भगवान का दर्शन करते हैं तो हमारी जिह्वा भगवान में रम जाती है। महाराज श्री ने कहा कि हमें जीवन में कुछ देर शांत बैठने का भी अभ्यास करना चाहिए। जब हम धीरे-धीरे इसका अभ्यास करते हैं तो हमें अपने अंदर से ऊर्जा का स्रोत पता चलने लगता है। हम अंतर से प्रकाशित होना शुरू कर देते हैं।

प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि भारत की भूमि देवभूमि है, धर्म की भूमि है। यहां धर्म का पालन करने वाले ही सदा सुखी रहते हैं और अधर्म पथ पर चलने वाले लोगों को दुख भोगने ही पड़ते हैं। हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है जैसे तैसे नहीं चलती है। धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है। मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में गलत कार्य करता है धन उपार्जन करने के लिए। लेकिन उसे यह सोचने की आवश्यकता होती है कि कोई इसके फल में उसका साथ देने वाला नहीं है फल तो उसको स्वयं अकेले ही खाना पड़ता है।

महाराज ने कहा कि बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है। अगर मनुष्य को जीवन में सुख चाहिए तो वह उसे सिर्फ अपने सत्कर्म से ही प्राप्त हो सकता है। अपने परिश्रम से अर्जित धन से जो व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है वही सुखी रह पाता है। भगवान अविकारी हैं और मनुष्य अर्थात जीव विकारों से परिपूर्ण है। भगवान और मनुष्य में यही मूल अंतर है। अपने कर्मों के माध्यम से जीव अगर अपने विकारों से रहित हो जाता है या विकारों को कम करना शुरू कर देता है तो वह भगवान के तुल्य होने लगता है। निरंतर सतकर्मों में रहने वाला व्यक्ति ही विकारों से छुटकारा पाता है। पूज्यश्री मानव मात्र के लिए यह उचित है कि वह कहीं भी विकारों की न चर्चा करें और ना ही किसी से भी विकारों की चर्चा सुने। रामचरितमानस में युवाचार्य लक्ष्मण जी ने निषादराज को यह संदेश विस्तार से बताया था। जानबूझ कर किया गया अपकर्म या पाप मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता है और उसका फल हर हाल में भोगना ही पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग रोज-रोज पाप करते और गंगा जी में नहा कर पाप धो लेते। फिर तो धरती पर कोई पापी बचता ही नहीं। सनातन सदग्रंथों में हर बात की व्याख्या की गई है, हमें इन पर विश्वास रखते हुए जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

बुधवार को की कथा दोपहर दो बजे से पांच बजे तक भगवान श्री राम राज्याभिषेक का महोत्सव मनाया जाएगा।

(Udaipur Kiran) / राजेश शुक्ला

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