हरिद्वार, 17 सितंबर (Udaipur Kiran) । पितृ पक्ष की मंगलवार से शुरुआत हो गयी है। माना जाता है कि पितृ पक्ष के समय पितृदेव धरतीलोक पर आते हैं और प्रेम सहित अर्पित प्रसाद को ग्रहण करते हैं। प्रसन्न होकर आशीर्वाद भी देते हैं।
ज्योतिशाचार्य पंडित प्रदीप जोशी ने बताया कि गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद का कर्म है तर्पण-पिंडदान और श्राद्ध। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि जो परिजन पृथ्वीलोक को छोड़कर जा चुके हैं, उनकी आत्मा की शांति और पितरों का ऋण उतारने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म अवश्य करने चाहिए, इसीलिए पितृ पक्ष में पितरों के लिए भोजन निकाला जाता है। सामान्य धारणा यह है कि जिनकी मृत्यु हो जाती है, वह पितर बन जाते हैं। किंतु गरुड़ पुराण पढ़ने से यह जानकारी मिलती है कि मृत्यु के पश्चात मृतक व्यक्ति का आत्मा प्रेतरूप में यमलोक की यात्रा शुरू करता है, इस यात्रा के दौरान संतान द्वारा प्रदान किए गए पिंडों से आत्मा को बल मिलता है। पिंडदान से पितरों को शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। भूलोक से प्रस्थान की तिथि पर घर में विधिवत पिंडदान किया जाता है। भारत के प्रमुख तीर्थ में श्राद्ध के लिए सर्वोपरि तीर्थ है गया जी, हरिद्वार में नारायणी शिला और बद्रिनाथ धाम। यहां पर किए गए पिंडदान से परिवार के 108 कुल एवं सात पीढ़ियों का उद्धार माना गया है।
उन्होंने बताया कि शास्त्रों में पितरों को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है। पितरों के दो रूप बताए गए हैं प्रथम देव पितृ और द्वितीय मनुष्य पितृ। देव पितृ का काम न्याय करना है। यह मनुष्य एवं अन्य जीवों के कर्मों के अनुसार उनका न्याय करते हैं। फिर आते हैं मनुष्य पितृ, इस बात पर प्रायः बहुत जिज्ञासा होती है कि क्या हमारे पितृ परलोक सिधारने के बाद भी हमें देख सकते हैं? गरुण पुराण के अनुसार, मृत्युलोक पर हमारे पूर्वज अपने परिवार के हर सदस्य पर नजर रखते हैं। प्रसन्न पूर्वज अपनी संतति की अपरोक्ष रूप से सहायता करते हैं, रक्षा करते हैं और दुखी पूर्वज श्राप देते हैं, इसी श्राप को पितृ दोष माना जाता है। यह विचार ही रोमांचित करता है कि हमारे प्रियजन मृत्यु के बाद भी हमें देख सकते हैं, अदृश्य पितर हमारी रक्षा कर सकते हैं।
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(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला