

देहरादून, 21 मई (Udaipur Kiran) । मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा भारतीय लोकतंत्र को और अधिक सशक्त, प्रभावी और समावेशी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल है। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि यह व्यवस्था उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्यों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
मुख्यमंत्री धामी बुधवार को मसूरी रोड स्थित एक होटल में ‘एक देश, एक चुनाव’ विषय पर आयोजित संयुक्त संसदीय समिति के संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष पी.पी. चौधरी समेत सभी सदस्यों का स्वागत और अभिनंदन किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी चुनाव प्रणाली विविधताओं के बावजूद प्रभावी और मजबूत रही है, लेकिन अलग-अलग समय में चुनाव होने से बार-बार आचार संहिता लगती है, इसके चलते राज्यो के सारे काम ठप पड़ जाते हैं। जब भी चुनाव आता है, तो बड़ी संख्या में कार्मिकों को मूल कार्य से हटाकर चुनाव ड्यूटी में लगाना पड़ता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले तीन सालों में राज्य में विधानसभा, लोकसभा और निकाय चुनावों की आचार संहिता के कारण 175 दिन तक राज्य की प्रशासनिक मशीनरी नीतिगत निर्णय लेने की प्रक्रिया से वंचित रही। छोटे और सीमित संसाधनों वाले राज्य के लिए ये 175 दिन शासन व्यवस्था की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विधानसभा निर्वाचन का पूर्ण व्यय भार राज्य सरकार वहन करती है और लोकसभा निर्वाचन का व्यय भार केंद्र सरकार की ओर से उठाया जाता है। दोनों चुनाव एक साथ कराए जाएं तो राज्य और केन्द्र सरकार पर व्यय भार समान रूप से आधा-आधा हो जाएगा। दोनों चुनाव एक साथ कराने से कुल व्यय में लगभग 30 से 35 प्रतिशत तक की बचत होगी। इसका उपयोग राज्य के स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, जल, कृषि एवं महिला सशक्तिकरण जैसे अनेक क्षेत्रों में किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में जून से सितंबर का समय चारधाम यात्रा के साथ-साथ, बारिश का भी होता है, ऐसे में चुनावी कार्यक्रम होने से बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा जनवरी से मार्च तक वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही के समय भी चुनावी प्रक्रिया निर्धारित नहीं की जानी चाहिए। फरवरी-मार्च के माह में हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट बोर्ड परीक्षाएं होने से प्रशासनिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और विषम में मतदान केन्द्रों तक पहुंचना कठिन होता है, जिसके कारण चुनाव की प्रक्रिया में अधिक समय और संसाधन लगते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में मतदाताओं के लिए चुनाव में भाग लेना भी चुनौतीपूर्ण होता है, बार-बार चुनाव होने से लोगों में मतदान के प्रति रुझान कम होता है और मतदान प्रतिशत भी घटता है।
(Udaipur Kiran) / राजेश कुमार
