Uttar Pradesh

धनतेरस पर्व पर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में बरसेगा आरोग्य का खजाना

भगवान धनवंतरि की फाइल फोटो

—भगवान धनवंतरि के दरबार में उमड़ेंगे श्रद्धालु,वर्ष में एक दिन खुलता है दरबार

वाराणसी,27 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । कार्तिक कृष्ण तेरस (धनतेरस) पर्व पर बाबा विश्वनाथ की नगरी में आरोग्य का खजाना बरसेगा। सिर्फ वर्ष में एक दिन खुलने वाले सुड़िया बुलानाला स्थित धनवंतरि भवन में स्थापित भगवान धनवंतरि के दरबार में श्रद्धालु दर्शन के लिए लालायित रहते हैं। पर्व पर दर्शन-पूजन प्रसाद के लिए सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता है। दरबार में राजवैद्य पं. शिवकुमार शास्त्री के परिवार के सदस्य भगवान धनवंतरि के विग्रह को पंचामृत स्नान कराने के बाद पहले औषधीय पौधों से श्रृंगार करते हैं। इसके बाद विशिष्ट चमत्कारी औषधियों का भोग वैदिक मंत्रोच्चार के बीच लगाया जाता है। इसके बाद मंदिर का पट आमजन के लिए खुलता है। शहर के इस अनूठे मंदिर में रजत सिंहासन पर विराजमान ढाई फुट ऊंची अष्टधातु की रत्न जड़ित देव मूर्ति का श्रद्धालु आरोग्य कामना से दर्शन-पूजन करते हैं। गौरतलब है कि करीब 300 साल से ज्यादा पुरानी भगवान धन्वंतरि की मूर्ति सुड़िया-बुलानाला में स्थित धन्वंतरि निवास में स्थापित है।

मान्यता है कि धनतेरस पर्व पर इस ड्योढ़ी पर हाजिरी मात्र से भक्तों को रोग-व्याधि से मुक्ति, सुख-समृद्धि और यश की प्राप्ति होती हैं। मंदिर का कपाट भी वर्ष में एक बार धनतेरस के दिन खुलता है। राजवैद्य शिवकुमार शास्त्री का परिवार पीढि़यों से मंदिर की देखरेख कर रहा है। परिवार के सदस्य बताते हैं कि पं. बाबूनंदन ने 300 वर्ष पहले धनवंतरि जयंती की शुरुआत की थी। काशी में विश्व का एकमात्र प्रमाणित भगवान धन्वंतरि का स्वरूप हमारे परिवार के मंदिर में हैं। मंदिर के गर्भगृह में रजत सिंहासन पर सुशोभित अष्टधातु की प्रतिमा भगवान धनवन्तरि की है। माथे पर स्वर्ण मुकुट और देह पर पीताम्बर धारण किए हुए देव विग्रह की छवि अद्भुत है। मस्तक पर स्वर्ण मुकुट हाथों में शंख-चक्र और अमृत कलश भगवान के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव स्वत: जगाता है। देवासुर संग्राम में जब समुद्र मंथन हुआ था, उस समय कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानि धनतेरस पर भगवान धनवन्तरि अमृत कलश लिए मध्याह्न बेला में प्रकट हुए थे। उनकी चार भुजाओं में शंख, चक्र, जोक व अमृत कलश शोभायमान रहा।

(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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