
बीकानेर, 30 अप्रैल (Udaipur Kiran) । बीकानेर के स्थापना दिवस पर कहीं गेहूं का, कहीं बाजरे का तो कहीं ज्वार का खीचड़ा बना। खीचड़ा स्वाद और सेहत की दृष्टि से तो लाजवाब है ही, इसकी एक बात और अनूठी है। खीचड़ा एक ऐसी रेसीपी है कि जिसकी मुख्य सामग्री लोग अपने स्वाद और सुुविधा से बदल देते हैं लेकिन इससे खीचड़े के स्वाद और गुणों कोई ज्यादा बदलाव नहीं होता। बीकानेर शहर में जहां अधिकांश घरों में गेहूं का खीचड़ा बनाया जाता है वहीं ग्रामीण इलाकों में बाजरे ओर ज्वार का खीचड़ा अधिक लोकप्रिय है। पौष्टिक दृष्टि से खीचड़ा एक बेहतरीन ऊर्जा दायक खाद्य पदार्थ है। नियमित सेवन से यह दुबले-पतले व्यक्ति की काया पलट कर देता है।
बीकानेर में आखाबीज-आखतीज का खीचड़ा खाने की भी एक निराली अदा है। यहां खीचड़े का स्वाद अलग थाली में बिल्कुल नहीं आता। परिवार के कम से कम चार-पांच सदस्य एक बड़ी थाली मेें गरमा गर्म खीचड़ा देशी घी की धार के साथ खाते हैं। खीचड़े में घी डालकर उसे इतना मथा जाता है कि खीचड़े का प्रोटीन दिखाई देने लगता है। खीचड़ा चाहे गेहूं का हो, बाजरे का हो या ज्वार का, उसमें मूंग आवश्यक रूप से डाले जाते हैं। कई लोग खीचड़ा बनाते समय एक छोटी गुड़ की डळी (टुकड़ा) भी डालते हैं, जो स्वाद को बढ़ाता है। खीचड़े के साथ होती है बड़ी की सब्जी। मोठों से बनी बड़ी की सब्जी में काचरी की खटाई डालने से उसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। खीचड़ा चूंकेि एक गरिष्ठ और भारी भोजन है। स्वादिष्ट होने के कारण हर व्यक्ति जी भर कर खाता है। फिर उसके साथ घी की मात्रा भी शरीर में अधिक पहुंच जाती है।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे पूर्वजों ने खीचड़े के साथ इमलाणी का प्रचलन कर दिया। इमलाणी इमली का देशी शर्बत है। इस इमलाणी शर्बत के सेवन खीचड़ा आसानी से हजम हो जाता है साथ ही तीज के दिन चिलचिलाती धूप में पतंगबाजी करते लोग इसे पीते रहते हैं। इससे उन्हें न तो लू लगती है और न ही गर्मी चढ़ती है। बीकानेर में आखातीज के दिन खीचड़ा सुबह बनता है। चंूकि बीज की शाम और तीज की सुबह खीचड़ा खाया हुआ होता है इसलिए तीज की शाम को विशेष हल्के ओर पाचक भोजन के रूप में चंदलिये की सब्जी और पतली-पतली चार पड़त की रोटी बनाई जाती है जो भारी खाने के बाद पेट के लिए बहुत मुफीद रहती है। बीकानेरवासियों ने एक बार फिर परम्पराओं का निर्वहन बखूबी तरीके से किया।
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(Udaipur Kiran) / राजीव
