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नर्सिंग ऑफिसर भर्ती 2023: दिव्यांग को मिला न्याय

jodhpur

छह सप्ताह के भीतर समस्त पारिणामिक परिलाभ सहित नियुक्ति दिए जाने के आदेश

जोधपुर, 26 अप्रैल (Udaipur Kiran) । नर्सिंग ऑफिसर भर्ती 2023 में एक पैर से दिव्यांग अभ्यर्थी को राजस्थान हाईकोर्ट से न्याय मिला है। हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिव्यांगता प्रमाण पत्र को कंसीडर करते हुए नर्सिंग ऑफिसर पद पर छह सप्ताह के भीतर समस्त पारिणामिक परिलाभ सहित नियुक्ति दिए जाने के आदेश जारी किए है। इस दौरान सुनवाई करते हुए न्यायाधीश रेखा बोराणा ने कहा कि विशेष योग्यजन को समाज की मुख्य विचारधारा में जोडऩे का कोई अवसर ना छूटे, यही विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 का मुख्य उद्देश्य है। विशेष योग्यजन कानून के तहत जारी स्थायी दिव्यांगता प्रमाणपत्र होने के बावजूद पुन: शारीरिक जांच कर दिव्यांगता का प्रतिशत बढ़ा मानकर या अन्य शारीरिक अंग में कुछ दिव्यांगता होना बताकर भर्ती में अपात्र/अयोग्य घोषित करना गैर कानूनी है।

दरअसल महात्मा गांधी अस्पताल में नर्सिंग ऑफिसर (यूटीबी) पद पर वर्तमान में कार्यरत दिव्यांग रामदयाल सारण को नर्सिंग ऑफिसर नियमित भर्ती 2023 में उसके एक पैर में 40 प्रतिशत लोकोमोटर डिसएबिलिटी होने और इसका दिव्यांगता प्रमाण पत्र होने के बावजूद अभ्यर्थिता यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर में पुन: शारीरिक परीक्षण करने पर उसके दूसरे पैर में भी दिव्यांगता पाई जाने से वह विज्ञापित पद पर निर्धारित बेंचमार्क दिव्यांगता नहीं रखता है जिस पर उसने अधिवक्ता यशपाल खि़लेरी और सुषमा के माफऱ्त रिट याचिका दायर कर चिकित्सा विभाग द्वारा याचिकाकर्ता के पुन: शारीरिक परीक्षण किए जाने को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के विपरीत बताते हुए और उसे जानबूझकर अपात्र घोषित करने को चुनौती दी।

याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि जिस व्यक्ति के एक पैर में 40 प्रतिशत या उससे अधिक दिव्यांगता है, उसका दूसरे पैर पर भी अधिक प्रभाव पडऩा स्वाभाविक है। स्वाभाविक रूप से, दूसरे पैर के अधिक उपयोग के कारण या अधिक शरीर का वजन मजबूत पैर पर स्थानांतरित होने के कारण। इस प्राकृतिक परिणाम से उन पर पहले से ही मौजूद प्रतिकूलताओं से अधिक प्रतिकूलता नहीं आनी चाहिये। याचिकाकर्ता के दूसरे पैर में मामूली अतिरिक्त शारिरिक दिव्यांगता के आधार पर उसकी उम्मीदवारी ख़ारिज करना अधिनियम की धारा 4 का स्पष्ठ उल्लंघन है और इस आधार पर दिव्यांग को सार्वजनिक रोजगार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, ताकि विशेष योग्यजन व्यक्तियों को समाज मे बिना भेदभाव के समान अवसर से भरा सम्मानजनक जीवन मिल सकें।

अधिनियमों का दिया हवाला

अधिवक्ता खि़लेरी ने बताया कि 2016 अधिनियम औऱ 2018 के बनाये गये नियम न केवल दिव्यांग व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि उसे एक आधार भी प्रदान करता है, ताकि वह सामाजिक और भावनात्मक बाधा को पार कर सके और समान स्तर पर आ सके तथा अपने अधिक भाग्यशाली समकक्षों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके, लेकिन वर्तमान भर्ती प्रक्रिया में राज्य सरकार का चिकित्सा विभाग और भर्ती एजेंसी द्वारा दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए केवल और केवल ऐसे मौके तलाशे जा रहे है कि कैसे भी करके एक दिव्यांग व्यक्ति को कैसे चयन प्रक्रिया से बाहर किया जा सकें। ऐसी सोच ही दिव्यांगता अधिनियम के प्रावधानों को विफ़ल बना रही हैं। नियमानुसार 1995 के अधिनियम अथवा 2016 के अधिनियम के तहत जारी स्थायी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के अस्तित्व में होने पर उसका दिव्यांगता जांचने के उद्देश्य से पुन: शारीरिक परीक्षण किया ही नही जा सकता है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी बताया गया कि वह वर्तमान में दिव्यांग कोटे में चयनित होकर नर्सिंग ऑफिसर/जीएनएम पद (यूटीबी आधार पर) पर अपनी संतोषप्रद सेवाएं राजकीय महात्मा गांधी अस्पताल जोधपुर में दे रहा है। ऐसे में अस्थायी आधार पर तो दिव्यांगता प्रमाण पत्र को मान्य किया गया है लेकिन नियमित भर्ती में उसी दिव्यांगता प्रमाण पत्र को अमान्य किया जाना हास्यास्पद हैं। रिट याचिका की अंतिम सुनवाई के पश्चात न्यायाधिपति रेखा बोराणा की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता के विशेष योग्यजन अधिनियम के तहत जारी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर नर्सिंग ऑफिसर पद पर छह सप्ताह के भीतर समस्त पारिणामिक परिलाभ सहित नियुक्ति दिए जाने का अहम निर्णय दिया।

(Udaipur Kiran) / सतीश

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