गुवाहाटी, 27 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । भारत ने लंबे समय से शांति, सद्भाव, भाईचारे और आध्यात्मिकता के सिद्धांतों का उदाहरण दिया है। हमारा प्राचीन दर्शन, ‘वसुधैव कुटुम्बकम’- जिसका अर्थ है ‘दुनिया एक परिवार है’- भारतीय सभ्यता और संस्कृति का सार है। जैसा कि हम पूर्वोत्तर पर ध्यान केंद्रित करते हैं, हम अपने जीवन में शांति, सद्भाव, आत्म-खोज और एक गहरी भक्ति चेतना को आमंत्रित करते हैं। हमारे देश की समृद्ध विविधता एकता का एक अंतर्निहित संदेश देती है और आध्यात्मिक ज्ञान और ध्यान की नींव के साथ, हम एक स्वस्थ समाज और राष्ट्र बनाने की अपनी क्षमता को मजबूत करते हैं। उपरोक्त बातें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज यहां कृष्णगुरु अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक युवा समाज के 21वें द्विवार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में कही।
उद्घाटन समारोह में असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य; असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमंत बिस्व सरमा, केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल; बीटीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रमोद बोडो; भक्तिमाता कुंतला पटवारी गोस्वामी और कृष्णगुरु इंटरनेशनल स्पिरिचुअल यूथ सोसाइटी की अध्यक्ष कमला गोगोई ने हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और असम सहित देश के विभिन्न हिस्सों से भक्तों ने भाग लिया।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “जब मैं इस कार्यक्रम में पहुंचा, तो मुझे ‘गुरु’ गुरुकृष्ण प्रेमानंद प्रभु से मिलकर एक नई ऊर्जा मिली। मैं एक नाम कृष्णगुरु के साथ एक नई ऊर्जा लेकर जा रहा हूं। कृष्णगुरु का नाम लेने से आध्यात्मिकता और उत्कृष्टता का संगम होता है। मैं इस पल को कभी नहीं भूलूंगा। मैं यहां जो देख रहा हूं, वह राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित, आध्यात्मिक रूप से इच्छुक और समाज को कुछ देने के लिए दिल से युवाओं का एक उल्लेखनीय, शानदार समागम है। यह एक नाम- कृष्णगुरु में उनके विश्वास के कारण है। यहां शक्तिशाली दिव्य ऊर्जा का प्रकटीकरण है – जो परमपूज्य कृष्णगुरु से आई है। वे अपने भक्तों के दिलों को सेवा, प्रेम और मानवता से रोशन करने वाली दिव्य कृपा के प्रतीक हैं। मैंने असम के लुभावने दृश्य देखे हैं जो लोगों के लिए आध्यात्मिकता के साथ अपने दिल और दिमाग को समृद्ध करने के लिए अनुकूल वातावरण बनाते हैं।”
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा, “मैं पूर्वोत्तर में हूं। यहां की प्राकृतिक सद्भावना लोगों को आत्म-खोज और आंतरिक शांति प्रदान करती है। आज यहां इस कार्यक्रम में भाग लेने के बाद मुझे आंतरिक शांति का एक नया अनुभव हुआ है। हमारी आध्यात्मिक विरासत, इस दुनिया में किसी भी अन्य की तुलना में समृद्ध और अद्वितीय है, ज्ञान का खजाना है जो रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में समाहित है। यह हमारी पहचान का सार है और यह हमारे युवाओं और आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान देगा। जिसने इसके प्रचार-प्रसार में उदारतापूर्वक योगदान दिया है, वह है एक नाम- कृष्णगुरु। भारतीयता हमारी पहचान है और इसके प्रचार-प्रसार और अजेयता के लिए हम दृढ़ता से खड़े हैं- एक नाम, कृष्णगुरु। कार्य उच्च उद्देश्य से निर्देशित होना चाहिए जो आज जब मैं परम पूज्य के साथ था, तो दृढ़ता से प्रतिध्वनित हुआ।”
(Udaipur Kiran) / अरविन्द राय