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वेयर हाउस धोखाधड़ी मामले में माफिया मुख्तार के साले को राहत नहीं 

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

प्रयागराज, 10 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माफिया मुख्तार के साले आतिफ रज़ा और अन्य अभियुक्तों को वेयर हाउस की ज़मीन के धोखाधडी मामले में दर्ज आपराधिक मुकदमा रद्द करने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।

न्यायालय ने इस मामले में चल रही आपराधिक कार्यवाही में सीजेएम गाजीपुर द्वारा जारी सम्मन पर हस्तक्षेप करने से इनकार किया है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में आपराधिक और सिविल कार्यवाही साथ-साथ चल सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने आतिफ और तीन अन्य की याचिका पर दिया। याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल चतुर्वेदी, एडवोकेट आलोक मिश्र जबकि प्रदेश सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता और सिविल मामले में अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता ने पक्ष रखा।

मामले में कहा गया कि आतिफ उर्फ शरजील, उसके भाई अनवर शहजाद, जाकिर हुसैन और रविंद्र नारायण सिंह के खिलाफ गाजीपुर के नंद गांव थाने में 2 अक्टूबर 2021 को धोखाधड़ी और कागजातों में हेर फेर कर वेयरहाउस के लिए जमीन फर्जी तरीके से हथियाने का मुकदमा यूपी स्टेट वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के जनरल मैनेजर शिव प्रताप सिंह ने दर्ज कराया था।

आरोप है कि अभियुक्तों ने वेयरहाउस के लिए लगभग 13 बीघा सरकारी जमीन को गलत तरीके से अपने नाम करा लिया था। इसका एक बड़ा हिस्सा तालाब का था जबकि जमीन का काफी हिस्सा ऐसा था जो हस्तांतरणीय नहीं था। जमीन मूल स्वामियों के बजाय फर्जी भू स्वामियों के नाम दिखाकर अपने नाम लिखा लिया गया। वेयरहाउस के लिए जारी टेंडर की शर्तों का उल्लंघन किया गया और 2 करोड़ 32 लाख रुपये की सरकारी सब्सिडी भी सरकार से हासिल की गई। विकास कंस्ट्रक्शन फर्म के नाम से बनाए गए वेयर हाउस में मुख्तार के सालों के अलावा उनकी पत्नी अफ़सा अंसारी की भी भागीदारी है।

याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि भूमि की प्रकृति निश्चित करने का क्षेत्राधिकार राजस्व और बंदोबस्त न्यायालयों के पास है जिसकी सिविल कार्यवाही राजस्व अदालत में लम्बित है। इस मामले में आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने यह भी दलील दी कि सिविल न्यायालय का फैसला आने तक आपराधिक कार्रवाई को स्थगित किया जाए।

याचिका का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता ने कहा कि जमीन को हथिया कर वेयरहाउस बनाने में आपराधिक षडयंत्र किया गया है। तालाब की जमीन को कागजों में हेर फेर कर उसका भू उपयोग बदला गया, साथ ही फर्जी लोगों को भू स्वामी बनाकर उनसे कागजों पर अंगूठा लगाकर जमीन हथियाई गई है। इस वेयरहाउस से याचीगण अब तक करोड़ों रुपये किराया प्राप्त कर चुके थे। उनके इस कृत्य से राज्य सरकार को राजस्व की भारी क्षति हुई है। कोर्ट ने कहा कि याची के अधिवक्ता की यह दलील नहीं स्वीकार कर की जा सकती है कि इस मामले में सिविल के साथ आपराधिक कार्रवाई चलाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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