–हाईकोर्ट ने जमानत याचिका पर जवाब के लिए ईडी को अनुस्मारक ईमेल भेजने पर वकीलों की निंदा की
प्रयागराज, 14 नवम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनी लांड्रिंग (धन शोधन) के एक केस में जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि “कोई वकील अपने मुवक्किल के साथ अपनी पहचान नहीं बता सकता। वह जांच अधिकारी आदि जैसी एजेंसियों से सीधे बातचीत नहीं कर सकता, जब तक कि अदालत द्वारा ऐसा आदेश न दिया जाए।
हाईकोर्ट ने धन शोधन के एक मामले में एक आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को जमानत याचिका लम्बित रहने के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से सीधे संवाद करने के लिए फटकार लगाई। यद्यपि कोर्ट ने एसवीओजीएल ऑयल गैस एंड एनर्जी लिमिटेड के संयुक्त प्रबंध निदेशक, आरोपी पदम सिंघी को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामले में जमानत दे दी।
आरोपितों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने ईडी के जांच अधिकारी (आईओ) को दो ईमेल भेजे थे, जिसमें उनसे मामले में देरी से बचने के लिए अदालत के आदेश के अनुसार जमानत मामले में जवाब दाखिल करने का अनुरोध किया गया था। न्यायमूर्ति समित गोपाल ने पद्म सिंधी बनाम प्रवर्तन निदेशालय के केस में अधिवक्ता के आचरण पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि यदि जवाब दाखिल करने के आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है, तो सही उपाय यही है कि पीठ को सूचित किया जाए।
अदालत ने कहा, “ई-मेल भेजकर अधिकारियों को अदालत के आदेश की याद दिलाना और उनसे इसका अनुपालन करने का अनुरोध करना इस मामले में उपस्थित वकीलों के कर्तव्यों के दायर में नहीं है। इस सम्बंध में न्यायालय ने अधिवक्ताओं के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया के व्यावसायिक आचरण नियमों का भी उल्लेख किया।
नियमों में कहा गया है कि “कोई भी वकील किसी भी तरह से विवाद के विषय पर किसी भी पक्ष के साथ संवाद या बातचीत नहीं करेगा, सिवाय उस वकील के माध्यम से।“
न्यायालय ने कहा कि वकीलों की कार्रवाई उचित नहीं थी और इसकी सराहना नहीं की जा सकती, क्योंकि जांच एजेंसी का प्रतिनिधित्व पहले दिन से ही वकीलों द्वारा किया गया था। हाईकोर्ट ने आरोपी के वकीलों के खिलाफ टिप्पणी प्रवर्तन निदेशालय के वकीलों की आपत्ति पर की।
कोर्ट ने कहा कि वकील का काम न्यायालय की सहायता करना है और आदेश का पालन न करने की शिकायत के मामले में, उचित प्रक्रिया यह है कि पीठ को इसकी जानकारी दी जाए।
वकीलों के संवाद से सम्बंधित मुद्दा ईडी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील द्वारा उठाया गया था, जिन्होंने जांच एजेंसी के साथ सीधे बातचीत करने के लिए आरोपित का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील की योग्यता पर सवाल उठाया गया था। हालांकि, कोर्ट ने वकीलों का स्पष्टीकरण को स्वीकार नहीं किया।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे