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नए कानून महिलाओं व बच्चों के प्रति ज्यादा संवेदनशील : ओपी सिंह

वेबिनार

-अउआ का नए अपराधिक कानून पर संवाद कार्यक्रम

-ज्यादा संसाधन और फॉरेंसिक विशेषज्ञों की जरूरत होगी

-संगठित अपराध भी दंडनीय

गाजियाबाद, 01 सितंबर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने कहा है कि नए अपराधिक कानून महिलाओं और बच्चों के लिये बहुत संवेदनशील हैं और अपराधियों की धरपकड़ के लिये पुरानी शैली छोड़कर नई तकनीकें अपनानी होंगी। इसके लिये अधिक संसाधनों की जरूरत है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय पुराछात्र संघ (अउआ) के संवाद कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण वेबनार को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह बातें कहीं। वेबनार का विषय था ‘नए आपराधिक कानून- समसामयिक प्रासंगिकता और निहितार्थ’।

रविवार शाम आयोजित हुए इस कार्यक्रम में पूर्व पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह के अलावा राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय लॉ यूनिवर्सिटी लखनऊ के एसोसिएट प्रोफेसर (कानून) डॉ कुमार असकंद पांडे और इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में संयुक्त निदेशक (अभियोजन) ललित मुद्गल मुख्य वक्ता थे। ये तीनों वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं। कार्यक्रम में देश-विदेश में रह रहे तमाम पुराछात्रों और लॉ की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों व पुलिस अधिकारियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन अउआ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व आईएएस एस.के. सिंह और महासचिव नवीन चन्द्रा ने किया। एसके सिंह ने वेबनार की उपयोगिता पर प्रकाश डाला और कहा कि किसी भी विषय पर विशेषज्ञों की राय बाकी लोगों को ज्ञानवर्धन कराती हैं।

विश्वविद्यालय के पुराछात्र पूर्व डीजीपी ओपी सिंह ने कहा कि नई भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) बेहद प्रभावी साबित होंगी। नए आपराधिक कानून फालतू प्रक्रियाओं और औपचारिकताओं को कम करने के अलावा, महिलाओं और बच्चों के प्रति ज्यादा ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि बदलाव सामान्य प्रक्रिया है। अपराधों के तौर-तरीकों में बदलाव आया है तो अपराधियों को पकड़ने और अपराधों पर नियंत्रण के लिये कानूनों में भी बदलाव लाजिमी हैं। ओपी सिंह ने कहा कि नए कानूनों ने ब्रिटिशकाल के कानून की कुछ शर्तों को हटाकर व्यावहारिक कर दिया है। कई पुराने कानून अप्रासंगिक हो गए थे।

पूर्व डीजीपी ने कहा कि नए कानून का फोकस सजा से लेकर न्याय तक है। यह सम-सामयिक समाज की चुनौतियों/अपराधों को परिभाषित करते हैं। उन्हें भरोसा है कि ये कानून न्याय और समानता के सिद्धांतों और समाज के सामूहिक हितों की रक्षा करेंगे। श्री सिंह ने सलाह दी कि नए कानूनों को संभालने के लिये अधिक फॉरेंसिक विशेषज्ञों और संसाधनों की आवश्यकता होगी। अपराधों में भी तकनीकों का इस्तेमाल सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।

वेबनार में मुख्य वक्ता डॉ कुमार असकंद पांडे ने कहा कि (बीएनएस) 2023 महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के प्रति इसलिये ज्यादा संवेदनशील हैं, क्योंकि समाज में इन्हें कमजोर आंका जाता है। नए कानून में एक नया अध्याय है, जो विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराधों की व्याख्या करता है। श्री पांडे ने कहा कि अपराधी को सजा देने के लिये सबूत सबसे अहम हथियार होता है। नए कानून में इस बात को विशेष तौर पर ध्यान में रखा गया है। नए कानून में गवाह को खतरा होने की आशंका के मद्देनजर वीडियो-आडियो के माध्यम से भी गवाही दर्ज करने की अनुमति दी गई है। जेल में विचाराधीन कैदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी अदालती कार्यवाही में भाग लेते हैं। निश्चित ही इससे संसाधनों और समय की बचत होती है। नए कानून में समानता के सिद्धांत को भी अंगीकार किया गया है और महिला-पुरुष के साथ ही ट्रांसजेंडर को भी समान भाव से शामिल किया गया है।

दूसरे मुख्य वक्ता ललित मुद्गल ने वेबनार को सम्बोधित करते हुए कहा कि संगठित अपराध और आतंकवादी कृत्य भी अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत दंडनीय हैं। नए कानून में जीरो एफआईआर सिस्टम लागू होने से कोई भी व्यक्ति रिपोर्ट दर्ज करा सकता है। सबसे खास बात यह है कि नए कानून में अपराध के घटनास्थल को लेकर पुलिस थानों में होने वाली रार को खत्म कर दिया गया है। इससे अपराध की तत्काल रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना संभव हुआ है। इसके अलावा प्रभावित पक्षों को समय पर उपस्थित होने के लिए ई-समन भेजना भी नए कानून में शामिल है। कुल मिलाकर नए कानून में वर्तमान तकनीकों को ध्यान में रखा या है, जो बहुत आवश्यक था।

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(Udaipur Kiran) / फरमान अली

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