नई दिल्ली, 11 जुलाई (Udaipur Kiran) । दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि नया आपराधिक कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) एक परिवर्तनकारी युग की शुरुआत करेगा। नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के तहत एक आरोपित को जमानत देते हुए जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि बीएनएसएस तकनीक के आधार पर पारदर्शी और जिम्मेदार न्याय सुनिश्चित करता है।
मामला 28 दिसंबर 2019 का है। दिल्ली पुलिस को सूचना मिली कि आरोपित बंतु हिमाचल प्रदेश से लाकर दिल्ली के मजनूं का टीला के पास संजय अखाड़ा में दिन के साढ़े तीन बजे से साढ़े चार बजे के बीच चरस की सप्लाई करने वाला है। इस सूचना को डायरी में दर्ज करने के बाद पुलिस ने शाम करीब चार बजकर 10 मिनट पर छापा मारा और आरोपित को गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस के मुताबिक आरोपित के पास से बरामद बैग में 1.1 किलोग्राम चरस बरामद किया गया। चरस की इतनी बड़ी मात्रा में बरामदगी कानून के मुताबिक व्यावसायिक श्रेणी में आता है। पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल की जिस पर 12 जनवरी 2022 को ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लिया। सुनवाई के दौरान आरोपित की ओर से पेश वकील ने कहा कि उसे झूठे तरीके से फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि अभियोजन की ओर से जांच में गंभीर खामियां हैं। आरोपित के वकील ने कहा कि बरामदगी दिन में हुई है उसके बावजूद पुलिस के बाद स्वतंत्र गवाह नहीं है।
आरोपित के वकील ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने जो सीडीआर दाखिल की है। उसके मुताबिक आरोपित के नंबर से बरामदगी वाले दिन 6 बजे शाम तक बात हुई है जबकि अभियोजन पक्ष कह रहा है कि आरोपित को करीब सवा चार बजे गिरफ्तार किया गया। उन्होंने कहा कि एनडीपीएस कानून की धारा 50 का पुलिस ने पालन नहीं किया और पहले से सूचना के बावजूद छापे की कार्रवाई की वीडियोग्राफी नहीं की गई।
हाई कोर्ट ने कहा कि अब विधायिका ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता पारित किया है जिसमें फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी को अनिवार्य बनाया गया है। इस कानून के पहले भी कई बार कोर्ट ने स्वतंत्र गवाह और अतिरिक्त साक्ष्य के तौर पर आडियो और वीडियो के महत्व को स्वीकार किया है। कोर्ट ने कहा कि आजकल हर व्यक्ति के पास मोबाइल है जो वीडियो बना सकता है, वैसे में छापे की कार्रवाई के दौरान वीडियो क्यों नहीं बनाया गया जबकि पहले से सूचना मिल चुकी थी और वो भी दिल्ली जैसी जगह में। कोर्ट ने कहा कि फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी को हर जगह स्वीकार किया गया है। कोर्ट ने कहा कि भले ही पुलिस ये कहे कि छापे के दौरान मोबाइल नहीं होना अभियोजन के केस के लिए घातक नहीं है लेकिन इससे आरोपित को संदेह का लाभ तो दिया ही जा सकता है।
(Udaipur Kiran) /संजय पाश
(Udaipur Kiran) पाश / पवन कुमार श्रीवास्तव