
शिमला, 17 मार्च (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में सीएसडीसी शिमला और अभ्युदय अध्ययन मंडल के संयुक्त तत्वावधान में ‘नई सदी का भारत: चुनौतियां और अवसर’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता पूर्व राज्यसभा सांसद एवं संघ विचारक डॉ. राकेश सिन्हा रहे।
डॉ. सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा कि स्वतंत्र भारत में वैचारिक मंथन का संकट गहराता जा रहा है। हम जरूरत से ज्यादा राजनीति के शिकार हो गए हैं जबकि भारतीय बौद्धिक परंपरा में शास्त्रार्थ और कठोर स्वाध्याय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि गोखले, गांधी, तिलक और आंबेडकर जैसे नेता अपने राजनीतिक कार्यों के बीच भी अध्ययन और बौद्धिक विमर्श को जीवित रखते थे लेकिन आज के समय में यह परंपरा कमजोर पड़ गई है।
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में भारत के औद्योगिक घरानों ने अपने-अपने ‘थिंक टैंक’ बनाए हैं, लेकिन वे बुद्धि-विलास तक ही सीमित रह गए हैं। विरासत का महिमामंडन करने के बजाय उसकी विशेषताओं को संदर्भ के अनुसार जीवंत करना असली चुनौती है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत में लगभग चार करोड़ प्राचीन पांडुलिपियां हैं, लेकिन उनके अध्ययन और संरक्षण की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं।
इस अवसर पर आरएसएस के प्रांत संघचालक प्रो. वीर सिंह रॉगड़ा और प्रो. ज्योति प्रकाश सहित कई विद्वान एवं शिक्षाविद मौजूद रहे। संगोष्ठी में देश की बौद्धिक और वैचारिक दिशा को लेकर गहन मंथन किया गया।
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(Udaipur Kiran) शुक्ला
