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जयपुर, 17 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने सिविल सेवा अपीलीय अधिकरण में सरकारी कर्मचारियों के प्रकरणों से जुडी अपीलों की सुनवाई में लचर व्यवस्था के मामले में अधिकरण के चेयरमैन को कहा है कि नई अपीलों को सुनवाई के लिए तीन दिन में सूचीबद्ध किया जाए। वहीं अधिकरण का मौजूदा कानून 50 साल पुराना हो गया है। इसलिए एजी, सीएस व विधि सचिव की कमेटी इस कानून में बदलाव को देखे। वहीं अधिकरण के अधीन रोडवेज और बिजली कंपनी सहित स्वायत्तशासी संस्थाओं के कर्मचारियों से जुडे मामलों को भी लाया जाए। जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश सोमवार को मोहम्मद काशिफ की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। अदालत ने मौखिक रूप से यह भी कहा कि अधिकरण में न्यायिक अधिकारी को चेयरमैन होना चाहिए।
सुनवाई के दौरान अदालती आदेश की पालना में अधिकरण चेयरमैन व न्यायिक सदस्य वीसी के जरिए और रजिस्ट्रार व्यक्तिगत तौर पर पेश हुए। अदालत ने उनसे पूछा कि क्या आप केसों की सुनवाई सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक ही करते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि सुबह 11 बजे से 3 बजे तक केसों की सुनवाई करते हैं। इस पर अदालत ने उनसे कहा कि राज्य सरकार का जो तय समय है, उसके अनुसार काम क्यों नहीं करते। इसका जवाब देते हुए चेयरमैन ने कहा कि तीन बजे बाद सुनवाई किए गए केसों में फैसले लिखवाते हैं। जिस पर अदालत ने उनसे पूछा कि अधिकरण में केसों की कितनी पेंडेंसी है, नए केसों का सुनवाई के लिए करीब एक महीने में नंबर आता है। इस पर राज्य सरकार के महाधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि हाईकोर्ट में भी केसों की पेंडेंसी ज्यादा है। ये अधिकरण में पेंडिंग केसों में सुनवाई करते हैं। फिलहाल ट्रांसफर खुलने के चलते ही रेट में केस बढे हैं। इस मामले में कानून को चुनौती नहीं दी गई है और यह मामला ट्रांसफर से जुडा हुआ है। इस दौरान अधिवक्ताओं ने अधिकरण की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि दैनिक तौर पर 50-60 केसों में ही सुनवाई हो पाती है। ट्रांसफर केस तो अधिकरण में अब आए है, बाकी समय तो रेट का स्टाफ फ्री ही रहता है। पूरी साल उन पर केसों का कोई दबाव नहीं होता। अदालत ने सभी पक्षकारों को सुनकर राज्य सरकार व रेट को कहा कि नई अपीलों को सुनवाई के लिए तीन दिन में सूचीबद्ध किया जाए और सुनवाई भी समयानुसार हो।
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(Udaipur Kiran)
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