
•जूनागढ़ में आयोजित संवाद में राज्यपाल ने प्राकृतिक कृषि को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया
जूनागढ़, 23 मई (Udaipur Kiran) । राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने शुक्रवार को जूनागढ़ में आयोजित एक संवाद में प्राकृतिक कृषि को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान करते हुए कहा कि यह केवल कृषि पद्धति नहीं, बल्कि मानव जीवन और पर्यावरण की रक्षा का एक पुण्य कार्य है। राज्यपाल ने कहा कि रासायनिक खेती का दुष्प्रभाव आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य पर गहरा पड़ रहा है। हृदय रोग, डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों का मुख्य कारण जहरीला आहार बन रहा है। ऐसे में प्राकृतिक कृषि ही एकमात्र विकल्प है जो इस संकट से निजात दिला सकता है।
जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के सरदार पटेल सभागार में आयोजित इस क्षेत्रीय स्तरीय प्राकृतिक कृषि परिसंवाद में राज्यपाल ने जूनागढ़ और राजकोट डिवीजन के 10 जिलों से आए कृषि विभाग के विस्तार कार्यकर्ताओं, ग्रामसेवकों, बागायती अधिकारियों और प्रगतिशील कृषक प्रतिनिधियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि के माध्यम से ही हम जनस्वास्थ्य, प्रकृति और पर्यावरण को संरक्षित रख सकते हैं। राज्यपाल ने सरल भाषा में प्राकृतिक कृषि की व्याख्या करते हुए कहा, “जंगल में हजारों पेड़-पौधे बिना किसी रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक के स्वस्थ और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। यही नियम यदि खेतों में अपनाया जाए तो वह प्राकृतिक कृषि कहलाती है।” उन्होंने इसे ईश्वरीय व्यवस्था का सहयोग मानते हुए कहा कि इस प्रणाली से न केवल जल प्रदूषण रोका जा सकता है, बल्कि मानव जीवन को भी गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है।
आचार्य देवव्रत ने स्पष्ट किया कि जैविक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती अधिक सहज, किफायती और प्रभावी है। जैविक खेती में निवेश अधिक है और हर किसान उसे अपनाने में सक्षम नहीं है, जबकि प्राकृतिक खेती में देसी गाय, गुड़ और दाल जैसे सामान्य संसाधनों से भी उत्तम उत्पादन संभव है। साथ ही यह मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी बढ़ाती है। राज्यपाल ने प्राकृतिक कृषि मिशन के अग्रिम पंक्ति के सिपाहियों – ग्रामसेवकों, विस्तार अधिकारियों और कृषि विभाग के कर्मियों को ‘भाग्यशाली’ बताते हुए कहा कि यदि आपके प्रयासों से मात्र 10 लोगों को भी गंभीर बीमारियों से बचाया जा सके, तो वह भी एक महत्वपूर्ण कर्तव्यपालन होगा। इस अवसर पर जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. वी.पी. चौवटिया ने बताया कि जूनागढ़ और दांतीवाड़ा कृषि विश्वविद्यालयों के अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि देसी गाय के गोबर में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु प्राकृतिक कृषि के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। मिश्रित फसलों—जैसे कपास के साथ मूंगफली या गन्ने के साथ धनिया—से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि भी देखी गई है।
कार्यक्रम में आत्मा परियोजना के निदेशक एस.के. जोशी ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया, जबकि संयुक्त कृषि निदेशक एम.एम. कासुंद्रा ने आभार प्रदर्शन किया। समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। इस अवसर पर जिला कलेक्टर अनिलकुमार राणावसिया, इंचार्ज जिला विकास अधिकारी पी.ए. जाडेजा, कृषि विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक बी.एन. जादव, आत्मा परियोजना जूनागढ़ के निदेशक दीपक राठौड़ सहित 10 जिलों के अधिकारी, कृषि सखियां एवं समुदाय संसाधन व्यक्ति उपस्थित रहे।
—————
(Udaipur Kiran) / बिनोद पाण्डेय
