जम्मू, 10 नवंबर (Udaipur Kiran) । नटरंग थिएटर ग्रुप ने अपने लोकप्रिय साप्ताहिक संडे थिएटर सीरीज के तहत राजिंदर कुमार शर्मा द्वारा लिखित और नीरज कांत द्वारा निर्देशित हिंदी नाटक तौबा-तौबा से दर्शकों को आनंदित किया। हास्य को सामाजिक टिप्पणियों के साथ मिलाते हुए नाटक ने कुछ कलाकारों की प्रतिबद्धता की कमी के कारण थिएटर समूहों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला। हालांकि इसकी हास्य प्रकृति ने प्रदर्शन को अत्यधिक शिक्षाप्रद होने के बजाय हल्का-फुल्का बनाए रखा।
कहानी अनोखे लाल के इर्द-गिर्द घूमती है। वह एक दृढ़ निश्चयी निर्देशक है जो आगामी प्रदर्शन की तैयारी के लिए अपने घर को रिहर्सल की जगह में बदल देता है। हालाँकि एक बेहतरीन प्रोडक्शन के उसके सपने जल्दी ही टूट जाते हैं जब यह स्पष्ट हो जाता है कि वह रिहर्सल को गंभीरता से लेने वाला अकेला व्यक्ति है। जहाँ अनोखे लाल अनुशासन बनाए रखने के लिए संघर्ष करता है वहीं जो अभिनेता कभी उससे छोटी-छोटी भूमिकाएँ माँगते थे, वे अब उसे नकारने लगे हैं अक्सर रिहर्सल छोड़ देते हैं या बड़े-बड़े बहाने बनाते हैं। नया नियुक्त नौकर अनजाने में हर बार जब आता है तो अधिक समस्याएं पैदा करता है।
जब अनोखे लाल एक के बाद एक हास्यपूर्ण असफलताओं से जूझता है तो उसकी चिंता चरम पर होती है। वहीं जब उसे पता चलता है कि नाटक में नायक के पिता की भूमिका निभाने वाले अभिनेता ने व्यक्तिगत प्रतिबद्धता के कारण काम छोड़ दिया है। हताशा में, अनोखे लाल अपने अनिच्छुक नौकर को भूमिका निभाने के लिए प्रशिक्षित करता है जिससे अप्रत्याशित और अराजक परिणाम सामने आते हैं। अंतिम मोड़ में अनोखे लाल के असली पिता आते हैं लेकिन नौकर को उनका रूप धारण करते हुए पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप एक हास्यपूर्ण टकराव होता है जहाँ अनोखे लाल और उनके नौकर दोनों को एक विनोदी लेकिन जोरदार डांट सहनी पड़ती है।
अपने मजाकिया लेखन और ऊर्जावान प्रदर्शनों के साथ तौबा-तौबा ने दर्शकों का मनोरंजन किया और नाट्य निर्माण के समर्पण और चुनौतियों को उजागर किया। नीरज कांत के निर्देशन ने नाटक के चंचल लेकिन सार्थक पहलुओं को सामने लाया।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा