
जम्मू, 5 मई (Udaipur Kiran) । नटरंग ने यहां नटरंग स्टूडियो थिएटर में प्रख्यात कार्टूनिस्ट चंदर शेखर के कार्टून और कैरिकेचर का शो आयोजित करके विश्व कार्टूनिस्ट दिवस मनाया। बंटी कार्टूनिस्ट के नाम से मशहूर इस शो में कार्टूनिस्ट चंदर शेखर को नटरंग के निदेशक बलवंत ठाकुर ने सम्मानित किया। इस अवसर पर नटरंग के वरिष्ठ कलाकार सूरज सिंह, नीरज कांत, अनिल टिक्कू, संजीव गुप्ता और सुभाष जम्वाल भी मौजूद थे। इस अवसर पर नटरंग के निदेशक बलवंत ठाकुर ने कहा कि जम्मू में इस दिन को मनाने की शुरुआत नटरंग ने की थी और पिछले साल इस महान अवसर को मनाने के लिए कला केंद्र जम्मू में एक बड़ी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था।
बलवंत ठाकुर ने आगे कहा कि विश्व कार्टूनिस्ट दिवस हर साल 5 मई को दुनिया भर में उन रचनात्मक दिमागों को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है जो कार्टून की कला के माध्यम से कहानियों, हास्य और टिप्पणियों को जीवंत करते हैं। जम्मू में अन्य लोगों के अलावा चंदर शेखर ने जटिल विचारों को सुलभ तरीकों से संप्रेषित करने के लिए लंबे समय से बुद्धि और चित्रण का उपयोग किया है। राजनीतिक व्यंग्य से लेकर सांस्कृतिक और सामाजिक टिप्पणियों तक चंदर शेखर ने सफलतापूर्वक जनमत को प्रभावित करना और समाज के सभी वर्गों के पाठकों/दर्शकों से जुड़ना जारी रखा है। जम्मू को उनके जैसी प्रतिभा का सौभाग्य प्राप्त है और उन्हें सम्मानित करके नटरंग खुद को सम्मानित कर रहा है।
बंटी कार्टूनिस्ट के नाम से मशहूर चंदर शेखर सिर्फ एक कलाकार नहीं हैं – वे समाज के इतिहासकार हैं, एक उद्देश्यपूर्ण व्यंग्यकार हैं और डोगरा धरती के एक गौरवशाली बेटे हैं जिन्होंने जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक और सामाजिक कार्टूनों को एक नई पहचान दी। छोटी उम्र से ही बंटी को कार्टूनों से गहरा लगाव था। आर.के. लक्ष्मण जैसे दिग्गजों से प्रेरित होकर वे अपने पड़ोसियों के अखबारों में से कार्टून स्ट्रिप्स काटकर निकाल लेते थे, अनजाने में ही अपने जीवन के जुनून की नींव रख देते थे। उनकी कलात्मक यात्रा स्कूल में डूडल से शुरू हुई और लोगों की नब्ज को पकड़ने वाले तीखे कैरिकेचर में विकसित हुई। हालांकि वह एक प्रशिक्षित अभिनेता और थिएटर कलाकार थे, लेकिन कलम और ब्रश की शक्ति ने ही उन्हें सही मायने में परिभाषित किया।
ऐसे क्षेत्र में जहां कार्टूनिंग की कोई स्थापित परंपरा नहीं थी, चंदर शेखर स्थानीय डोगराओं के कैरिकेचर को समर्पित एकल प्रदर्शनियों का आयोजन करने वाले पहले व्यक्ति बने। उन्होंने वास्तविक सामाजिक समस्याओं को बोल्ड, आकर्षक कार्टून में बदलकर एक अलग पहचान बनाई- चाहे वह भ्रष्टाचार हो, नशीली दवाओं का दुरुपयोग हो, पर्यावरण की उपेक्षा हो या राजनीतिक उदासीनता हो। खुशवंत सिंह के उनके कैरिकेचर ने उन्हें मेल टुडे प्रतियोगिता में राष्ट्रीय पहचान दिलाई, जिसके निर्णायक सुधीर डार जैसे महान लोग थे। दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का उनका चित्र चुना गया और राष्ट्रपति भवन में प्रदर्शित किया गया- किसी भी भारतीय कलाकार के लिए यह गर्व का क्षण था।
कोविड-19 महामारी के दौरान जब गैलरी बंद हो गईं तो बंटी ने अपनी छत को एक अनूठी लॉकडाउन गैलरी में बदल दिया जिससे दुनिया नीचे सड़क से उनकी कला को देखने के लिए आमंत्रित हुई। उनके जुनून ने बंटून क्लब को जन्म दिया- एक ऐसा मंच जो महत्वाकांक्षी कार्टूनिस्टों को सलाह देता है और युवाओं के लिए रचनात्मक अभियान चलाता है। वह नियमित रूप से अपने कार्टूनों का उपयोग स्वच्छ भारत और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी सरकारी पहलों का समर्थन करने के लिए करते हैं।
30,000 से अधिक कार्टून और कैरिकेचर के साथ उनके काम को 38 देशों में प्रदर्शित किया गया है। अंतरराष्ट्रीय मान्यता के बावजूद वह जम्मू की संस्कृति में गहराई से निहित हैं अक्सर स्थानीय पहचान को बढ़ावा देने के लिए डोगरी में काम करते हैं। बंटी कार्टूनिस्ट केवल चेहरे नहीं बना रहे हैं, वह मुद्दों पर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, व्यंग्य के माध्यम से मुस्कान खींच रहे हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्याही, जुनून और गर्व के साथ जम्मू और कश्मीर में कार्टूनिंग के भविष्य को चित्रित कर रहे हैं।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
