उदयपुर, 8 दिसंबर (Udaipur Kiran) । रावत उपनाम की जातिसूचक व्याख्या कर अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक हक छीनते हुए भीलों, भील-मीणा को जबरन अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में दर्ज करने को लेकर सांसद डॉ. मन्नालाल रावत द्वारा की गई शिकायत पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने राजस्थान के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर इस संबंध में कार्रवाइयों को लेकर 15 दिन में जवाब मांगा है। आयोग ने उदयपुर जिला कलेक्टर से भी इस संबंध में जवाब तलब किया है।
सांसद रावत ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष को लिखे पत्र में बताया था कि भीलों को जबरन ओबीसी वर्ग की श्रेणी में दर्ज करने का गोरखधंधा कई सालों से किया जा रहा है, जिसमें जनजाति समाज के भोले भाले लोगों की जमीनें हड़पीं जा रही हैं। कांग्रेस कार्यकाल में इसको संवैधानिक बनाने के लिए आदेश भी जारी कर दिए गए जो कि पूर्णतया गलत है। केवल अनुसूचित जनजाति की संपत्ति हड़पने के इरादे से ये कृत्य किए गए।
सांसद रावत ने बताया कि राजस्थान सरकार का एक परिपत्र संख्या प. 5/8/राज-4/83/राज-6/15 दिनांक 1 नवंबर 1996 इस प्रकार जारी किया गया कि भू-अभिलेख रिकॉर्ड में मीणा जाति शब्द के स्थान पर जबरन रावत जाति शब्द लिखाया जाकर अनुसूचित जनजाति के हजारों सदस्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में डाल दिया गया, जिससे इन लोगों को आरक्षण सहित कृषि भूमि सम्बन्धी वैधानिक सुरक्षा को भी भारी हानि पहुंचाई गई। तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दबाव में जिला कलेक्टर उदयपुर द्वारा आदेश क्रमांक एफ 12/7/1/राज/97/4236-52 दिनांक 11 सितंबर .2000 द्वारा रावत उपनाम वाले भीलों के भू-अभिलेख में रावत अन्य पिछड़ा वर्ग दर्ज करने के लिए अभियान के तौर पर निपटाने के निर्देश भी दिये जो इस षड़यंत्र का स्पष्ट खुलासा करता है।
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(Udaipur Kiran) / सुनीता