Haryana

नारनौल के किसान ने पांच साै गायाें काे गेहूं की खड़ी फसल का कराया भाेजन

भोजावास गांव में किसान महेंद्र सिंह के खेत में चरती हुई गौशाला की गाएँ।

नारनाैल, 27 जनवरी (Udaipur Kiran) । जिले के गांव भोजावास निवासी किसान महेंद्र सिंह यादव ने हर वर्ष की भांति इस साल भी सोमवार को अपनी गेहूं की फसल से भोजावास गौशाला की 500 गायों को भोजन करवाया। कृषि का यह नवाचार वे पिछले दो दशकों से करते आ रहे हैं। यह किसान पशुपालन में राज्य स्तर पर हरियाणा सरकार का पुरस्कार पा चुका है।

वे घर पर गाय-भैंस पालने के अलावा घोड़ी रखने के भी शौकीन हैं। 65 वर्षीय किसान महेंद्र सिंह यादव प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर अपनी कई एकड़ की गेहूं की फसल में भोजावास गौशाला की सैंकड़ों गाएं चरने के लिए आमंत्रित करते हैं। इस दिन वे इन गायों के साथ आने वाले ग्वालों को भी घी-चूरमा खिलाते हैं। इस बार यह आयोजन अहीरवाल शोध यात्रा के समापन के अवसर पर 27 जनवरी को किया गया।

महेंद्र सिंह यादव करीब पिछले 20 वर्षों से यह नवाचार कर रहे हैं। ये गाएं ऊपर से गेहूं को चर जाती हैं तथा नीचे बचे गेहूं में फिर तेजी से फुटाव होता है। इससे उनकी फसल और भी जोरदार होती है। अब इससे प्रेरित होकर पिछले कुछ वर्षों से वे बाजरे की फसल में भी यह प्रयोग करने लगे हैं, जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। उन्होंने कई बार अन्य किसानों से ज्यादा गेहूं व बाजरे की पैदावार इसी नवाचार से प्राप्त की है। उनके इस कार्य में उनका पूरा परिवार तथा दोनों बेटे सोनू व अभिषेक भी मदद करते हैं।

इस बार यह आयोजन अहीरवाल शोध यात्रा के समापन के अवसर पर 27 जनवरी को किया गया, जिसमें गौशाला के प्रतिनिधियों के अलावा ग्रामीणों ने भी भाग लिया।

अहीरवाल शोध यात्रा के प्रभारी तथा कृषि शोधार्थी कमलजीत ने कहा कि अब इस नवाचार को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए वे काम करेंगे। वे मानते हैं कि यह हमारे किसानों के अनुभव का अपना मौलिक नवाचार है।

एक तरफ जहां आज गाएं बदहाल हैं, गोचर भूमि बची नहीं है, जिसके चलते भूखी आवारा गाएँ सड़कों व बाजारों में पॉलिथीन खाने पर विवश हैं, वहीं उनका यह कृषि नवाचार कई मायनों में महत्वपूर्ण है। हमारी गौशालाओं के संरक्षण एवं संवर्धन में भी अभी बहुत कुछ होना बाकी है। ऐसे माहौल में यदि ऐसे नवाचार गांव-गांव देशभर में किए जाएँ, तो भारतीय संस्कृति में विशेष दर्जा रखने वाली गायों का पेट भर जाएगा तथा किसानों को नुकसान भी नहीं होगा। सरकारी तौर पर भी इस नवाचार को बढ़ावा दिया जा सकता है।

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(Udaipur Kiran) / श्याम सुंदर शुक्ला

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