नालंदा,बिहारशरीफ 10 जून (Udaipur Kiran) ।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट के बीच नालंदा जिले के किसान एक नई उम्मीद की ओर कदम बढ़ा रहे हैं—जिसे ‘कार्बन खेती’ के नाम से जाना जाता है। यह खेती न केवल मृदा की उर्वरता बढ़ाने में सहायक है बल्कि वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर वैश्विक तापमान वृद्धि की समस्या से निपटने में भी कारगर है।
नालंदा उद्यान महाविद्यालय नूरसराय के विशेषज्ञों के अनुसार कार्बन खेती केवल एक तकनीक नहीं बल्कि धरती माँ को फिर से जीवन देने का समर्पित प्रयास है। इसमें किसानों को प्रेरित किया जा रहा है कि वे रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक पद्धतियों को अपनाएं जिससे न केवल उनकी उपज की गुणवत्ता बढ़े बल्कि उत्पादन लागत भी घटे।विशेषज्ञों का कहना है कि कार्बन खेती की पद्धति के अंतर्गत मुख्य रूप से जो उपाय अपनाए जा सकते हैं। उनमें मुख्यत:दलहनी फसलों की बुआई: जो मृदा में नत्रजन स्थिरीकरण में सहायक होती हैं।
कवर फसलें जो मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं।कम जुताई और जैविक खाद का प्रयोग जिससे मृदा की संरचना और जलधारण क्षमता में सुधार होता है।
हरी खाद और वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग: जिससे मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है।फसल अवशेष प्रबंधन और कृषि वानिकी को बढ़ावा: जिससे खेतों में कार्बन अवशोषण बढ़ता है।इन प्रयासों से किसानों को न केवल समृद्धि मिलेगी बल्कि वे कार्बन क्रेडिट जैसी योजनाओं में भाग लेकर अतिरिक्त आमदनी भी अर्जित कर सकते हैं।
इस कृषि पद्धति से कई लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे किरासायनिक उर्वरकों की निर्भरता में कमीफसलों की गुणवत्ता में सुधारजल और वायु की शुद्धताजैव विविधता में वृद्धिउत्पादन लागत में कमीपर्यावरणीय प्रदूषण मेंकमी कार्बन खेती आने वाले समय में नालंदा सहित पूरे भारत में कृषि क्षेत्र को स्थायित्व प्रदान कर सकती है। यह एक ऐसी पहल है जो धरती के साथ समरसता स्थापित करते हुए किसान के जीवन में हरियाली ला सकती है।
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(Udaipur Kiran) / प्रमोद पांडे
