
शिमला, 18 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । राजस्थान के उदयपुर में आयोजित दूसरे ऑल इंडिया स्टेट वाटर मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस में हिमाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने आज जल सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। ‘इंडिया-2047- जल सुरक्षित राष्ट्र’ विषय पर अपने संबोधन में उन्होंने जल संकट, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और नवाचार आधारित समाधान की आवश्यकता को रेखांकित किया ताकि जल प्रबंधन को अधिक स्थायी बनाया जा सके।
उपमुख्यमंत्री ने सम्मेलन के पहले दिन कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष नीति बननी चाहिए। उन्होंने बताया कि असमय बारिश और कम बर्फबारी के कारण जल स्रोतों का जल स्तर घटता जा रहा है। वैज्ञानिक अध्ययनों का हवाला देते हुए मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि हिमालयी ग्लेशियर प्रति दशक 20-30 मीटर की दर से पिघल रहे हैं जिससे नदी प्रवाह में अनिश्चितता बढ़ रही है और जल संकट गहरा हो रहा है। इससे पीने के पानी, सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने जलवायु-सहिष्णु नीतियों और उन्नत वैज्ञानिक हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर जोर दिया।
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि हमें अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा और पारंपरिक जल स्रोतों के संरक्षण के साथ-साथ आधुनिक तकनीक, नवाचारों और विकल्पों पर भी विचार करना होगा। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के 65 प्रतिशत हिस्से के वन क्षेत्र के तहत आने की जानकारी दी, जिससे विकास परियोजनाओं के लिए भूमि की उपलब्धता सीमित हो जाती है। हिमाचल के जल संरक्षण, पर्यावरण और पारिस्थितिकी को बचाने में वन संरक्षण का बड़ा योगदान है, और इसके बदले केंद्र से विशेष पैकेज मिलना चाहिए।
अग्निहोत्री ने कहा कि हमने हर घर नल तो पहुंचा दिए हैं, लेकिन हर नल में जल पहुंचाना अब बड़ी चुनौती है। पानी की कमी को पूरा करने के लिए वर्षा जल संग्रहण और जल स्रोत पुनर्भरण संरचनाओं को प्रोत्साहित करना होगा और इसके लिए पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष केंद्रीय सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने पहाड़ी राज्यों के लिए केंद्रीय अनुदान के मापदंडों में लचीलापन लाने का आग्रह किया, क्योंकि पहाड़ी राज्यों की जटिल भौगोलिक संरचना और दुर्गम परिस्थितियों में निर्माण लागत अधिक होती है।
उप मुख्यमंत्री ने जल जीवन मिशन के तहत लगभग 1000 अधूरी पेयजल आपूर्ति योजनाओं को पूरा करने के लिए 2000 करोड़ रुपये की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने उच्च पर्वतीय राज्यों के लिए एक विशेष फंडिंग विंडो बनाने का प्रस्ताव रखा, जिससे हिमाचल के किन्नौर, लाहौल-स्पीति और चंबा जैसे जनजातीय क्षेत्रों में एंटी-फ्रीज जल आपूर्ति योजनाएं बनाई जा सकें। इसमें इन्सुलेटेड पाइपलाइन, हीटेड टैप सिस्टम और सौर-चालित पंप शामिल होंगे।
अग्निहोत्री ने हिमाचल प्रदेश के लिए बर्फ और जल संरक्षण हेतु 1269.29 करोड़ रुपये और सूखे और खराब पड़े हैंडपंपों तथा ट्यूबवेलों के माध्यम से भूजल के पुनर्भरण के लिए विस्तृत परियोजना को लागू करने के लिए केंद्र सरकार से वित्त पोषण की मांग की।
उन्होंने राज्य की 90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और कृषि, बागवानी व सब्जी उत्पादन पर निर्भर 67 प्रतिशत ग्रामीणों के लिए सिंचाई योजनाओं को बढ़ावा देने का भी आग्रह किया। उन्होंने पीएमकेएसवाई और एआईबीपी के तहत लम्बित पड़ी नई सतही लघु और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को शीघ्र मंजूरी देने की बात भी की।
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(Udaipur Kiran) शुक्ला
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