Uttar Pradesh

गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में ‘नींव का पत्थर’ है एमपी शिक्षा परिषद

गोरखपुर, 29 अप्रैल (Udaipur Kiran) । देश को आजादी मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के पहले राज्य विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित गोरखपुर विश्वविद्यालय (वर्तमान में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय) उच्च शिक्षा के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में अपनी सेवा यात्रा के 75 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है। 1 मई 1950 को इसका शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने किया था। स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में 30 अप्रैल को विश्वविद्यालय की तरफ से हीरक जयंती समारोह का आयोजन किया जा रहा है जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद रहेंगे। गोरखपुर विश्वविद्यालय के हीरक जयंती समारोह में मुख्यमंत्री की उपस्थिति उनके लिए प्रोटोकॉल से परे निजी तौर पर भी बेहद विशेष होगी। कारण, सीएम योगी जिस गोरक्षपीठ के महंत हैं, उसी पीठ से संचालित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की भूमिका गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में ‘नींव के पत्थर’ समान है।

महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना 1932 में तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ जी ने की थी और जब गोरखपुर में पहला राज्य विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना सिर्फ विचार मात्र तक सीमित थी तब महंत दिग्विजयनाथ जी शिक्षा परिषद के बैनर तले महाराणा प्रताप के नाम पर दो डिग्री कॉलेज (महिला और पुरुष) खोल चुके थे। इतिहास अध्येता एवं महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसढ़ के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव बताते हैं कि 1947 में आजादी मिलने के बाद सरकार यूपी में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना बना रही थी। इसके लिए सरकार की प्राथमिकता में पश्चिमी उत्तर प्रदेश था। तब महंत दिग्विजयनाथ, भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार और सरदार मजीठिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री से आजादी के बाद का पहला राज्य विश्वविद्यालय गोरखपुर में खोलने की मांग रखी।

विश्वविद्यालय खोलने में एक बड़ी दिक्कत यह थी तब इसके लिए 50 लाख रुपये या इतने की संपत्ति की दरकार अपरिहार्य थी। इस समस्या का हल निकाला महंत दिग्विजयनाथ ने। उन्होंने इसके लिए एमपी शिक्षा परिषद के तहत संचालित महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज और महाराणा प्रताप महिला डिग्री कॉलेज गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दे दिया। इन दोनों का मूल्यांकन 42 लाख रुपये हुआ और जो जरूरी 8 लाख रुपये कम पड़े, उसकी व्यवस्था आसपास की रियासतों के राजपरिवारों ने दान देकर की। तत्कालीन जिला कलेक्टर पं. सुरति नारायण मणि त्रिपाठी जो विश्वविद्यालय के लिए बनाई गई स्थापना समिति के पदेन अध्यक्ष हुए, ने विश्वविद्यालय के लिए आवश्यक जमीन अधिग्रहीत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉ. राव बताते हैं कि गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना के दौरान एमपी शिक्षा परिषद की भूमिका इससे भी समझी जा सकती है कि जब इसकी स्थापना समिति गठित की गई तब 18 सदस्यीय कमेटी में 11 सदस्य महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से ही थे। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद आज भी गोरखपुर विश्वविद्यालय को अपना ही अंग मानता है और आज भी विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद में एमपी शिक्षा परिषद का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित है।

बुधवार को जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर विश्वविद्यालय के हीरक जयंती समारोह में शामिल होंगे तो बतौर गोरक्षपीठाधीश्वर उनकी स्मृतियों के आलोक में गोरक्षपीठ, एमपी शिक्षा परिषद और इस परिषद के निर्माता ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ बरबस ही स्पंदित होने लगेंगे। ऐसा इसलिए भी कि हीरक जयंती समारोह में विश्वविद्यालय की तरफ से मुख्यमंत्री के हाथों महंत दिग्विजयनाथ के नाम पर 1500 लोगों की क्षमता वाले प्रेक्षागृह का भी शिलान्यास कराया जाएगा।

(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय

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