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एक हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने  श्राद्ध तर्पण कर पितरों को दी यज्ञ में आहुतियां

एक हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने  श्राद्ध तर्पण कर पितरों को दी यज्ञ में आहुतियां
एक हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने  श्राद्ध तर्पण कर पितरों को दी यज्ञ में आहुतियां

जयपुर, 2 अक्टूबर (Udaipur Kiran) ।कालवाड़ गायत्री शक्तिपीठ में हो रहे 108 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में तीसरे दिन श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन सर्व पितृ अमावस्या तिथि पर सामूहिक पितृ तर्पण का विशेष अनुष्ठान हुआ। एक हजार से अधिक लोगों ने विधि विधान से गंगा जल मिले जल में फूल, चावल, काले तिल, जो, दूध, दही, शहद से तर्पण किया। सर्व प्रथम देव और ऋषि तर्पण किया गया इसके बाद दिव्य-पितृ, यम, मनुष्य पितृ-तर्पण किया गया। बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी अपने दिवंगत रिश्तेदारों का तर्पण किया। कंधे पर जनेयू और अंगुली में कुशा की अंगूठी धारण कर अलग अलग दिशा और आसन में लोगों ने अपने पितरों का नाम लेकर श्रद्धा पूर्वक तर्पण किया। तर्पण के बाद बारह पिण्ड दान किया। इस मौके पर व्यास पीठ से दिनेश आचार्य ने कहा तर्पण से पूर्वज प्रसन्न होते हैं तथा आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। भारतीय संस्कृति शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर मानती है। इस दौरान तुलसी के पौधे वितरित किए गए। पितृ तर्पण के मौके पर श्रद्धालुओं ने गायत्री, महामृत्युंजय मंत्र तथा पितरों के निमित्त विशेष आहुतियां भी अर्पित की।

इस मौके पर व्यास पीठ से टोली नायक शशि कांत सिंह ने कहा कि हर श्रेष्ठ कर्म ही यज्ञ है। जिन्होंने भी राष्ट्र को समुन्नत बनाने के लिए जो भी कार्य किया मान कर चलिए उन्होंने यज्ञ किया है। त्याग, सेवा, बलिदान यज्ञ का ही नाम है। सन्त, महापुरुष , शहीद स्वाहा स्वाहा करते दिखे या नहीं लेकिन उन्होंने राष्ट्र निर्माण में प्राणों की आहुति अर्पित कर जीवन यज्ञ कर लिया। उन्होंने कहा कि यज्ञ और मनुष्य दोनों सगे भाई है। इसलिए यज्ञ की गौरव गरिमा को समझे और समझदारी, ईमानदारी , जिम्मेदारी और बहादुरी के साथ जीवन जीएं। यज्ञ के बाद श्रेष्ठ कार्य करने का संकल्प लेकर अवश्य जाएं । प्रज्ञा पुराण कथा में 18 पुराणों का सार

शाम को प्रज्ञा पुराण कथा हुई। व्यास पीठ से शशि कांत सिंह ने कहा कि प्रज्ञा पुराण के चार खंड हैं। प्रथम खंड लोक कल्याण जिज्ञासा प्रकरण से शुरू होता है। यह प्राणी को आत्मबोध कराता है। द्वितीय खंड मानव जीवन को स्वार्थ से उठकर परमार्थ की प्रेरणा देता है। तृतीय खंड में परिवार निर्माण, नारी जागरण, शिशु निर्माण और वसुधैव कुटुंबकम का पाठ पढ़ाया जाता है। वहीं चतुर्थ खंड में भारतीय संस्कृति के जागरण का संदेश है। कथाव्यास ने कहा कि प्रज्ञा पुराणा कथा का शुभारंभ देवर्षि नारद और भगवान विष्णु के संवाद से होता है। प्रज्ञा पुराण में वसुधैव कुटुंबकम को स्पष्ट करते हुए कहा कि विश्व परिवार की परिधि बहुत विशाल है। उसमें समस्त प्राणी आ जाते हैं। भारत में पशु पक्षियों को भी परिवार का सदस्य माना जाता है। यहां गाय के लिए पहली और कुत्ते के लिए आखिरी रोटी निकाली जाती है। चीटियों को आटा और पक्षियों को दाना डालते हैं। वास्तव में सच्चा सुख देने में है, लेने में नहीं। आयोजन स्थल प्रदेश शाम को दीप महायज्ञ हुआ। हजारों की संख्या में दीपक प्रज्वलित कर श्रद्धालुओं ने अक्षत के माध्यम से विश्व कल्याण की कामना के साथ आहुतियां अर्पित की। एक साथ हजारों दीपों की रोशनी से आयोजन स्थल दिवाली की तरह जगमगा उठा।

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(Udaipur Kiran)

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