Uttar Pradesh

मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिकाघाट पर धधकती चिंताओं के बीच गूंजी घुंघरूओं की झंकार

महाश्मशान नाथ के त्रिदिवसीय श्रृंगार महोत्सव के अन्तिम निशा में नगर वधुओं का नृत्य
महाश्मशान नाथ के त्रिदिवसीय श्रृंगार महोत्सव के अन्तिम निशा में नगर वधुओं का नृत्य
The tinkling of bells echoed amidst the burning worries

—महाश्मशान नाथ के त्रिदिवसीय श्रृंगार महोत्सव के अन्तिम निशा में नगर वधुओं ने नृत्यांजलि पेश की

—अगले जन्म में नगर वधू न बनने की कामना के साथ नृत्य

वाराणसी, 04 अप्रैल (Udaipur Kiran) । वासंतिक चैत्र नवरात्र के सातवें दिन शुक्रवार शाम को मोक्षतीर्थ मणिकर्णिकाघाट शवलोक पर शिवलोक का नजारा दिखा। घाट पर धधकती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने नृत्य कर महाश्मशान नाथ के त्रिदिवसीय श्रृंगार महोत्सव के अन्तिम निशा में सैकड़ों वर्षों पुरानी परम्परा को जीवंत किया। बाबा मशाननाथ से नगर वधुओं ने अगले जन्म में इस जीवन से मुक्ति की गुहार लगाई। घाट के चारों तरफ चिताएं धधक रही थीं।

अपने परिजनों के अन्तिम यात्रा में आए शवयात्री यह नजारा देखकर अचंभित नजर आए। नगरवधुओं ने सबसे पहले बाबा मशाननाथ की पूरे श्रद्धाभाव से पूजा की। महाश्मशान नाथ के गर्भगृह में दीप जलाने के बाद जीवन के अंधकार से छुटकारा पाने की अर्जी लगाई। इसके बाद दरबार में चैती व कजरी आदि गीतों पर नृत्य किया। मंदिर के गर्भगृह में नृत्यांजलि पेश करने के बाद मणिकर्णिकाघाट पर सजे भव्य मंच पर देर रात तक नगर वधुओं ने नृत्य प्रस्तुत किया।

नगर वधुओं ने दुर्गा दुर्गति नाशिनी, दिमिग दिमिग डमरू कर बाजे, डिम डिम तन दिन दिन तू ही तू जगबक आधार तू, ओम नमः शिवाय, मणिकर्णिका स्रोत, खेले मसाने में होरी के बाद दादरा, ठुमरी, व चैती गाकर बाबा के श्री चरणों में अपनी गीतांजलि अर्पित की। इसके बाद बाद काशी का प्रसिद्ध सुमधुर गायन ओम मंगलम औमकार मंगलम, बम लहरी बम बम लहरी जैसे भजनों से भक्तों को झूमने पर मजबूर कर दिया। महादेव के अविनाशी काशी में यह अद्भभुत अल्हड़ नजारा देखने के लिए हजारों काशीवासियों की भीड़ जुटी रही।

इसके पहले नवरात्रि के पांचवीं तिथि से सप्तमी तक चलने वाले महाश्मशान नाथ के त्रिदिवसीय श्रृंगार महोत्सव के अन्तिम निशा में शाम को बाबा महाश्मशाननाथ की सांयकाल पंचमकार का भोग लगाकर तांत्रोक्त विधान से भव्य आरती की गई। मान्यता है कि बाबा को प्रसन्न करने के लिये शक्ति ने योगिनी रूप धरा था।

महाश्मशाननाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर और मंदिर समिति के अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता ने बताया कि मणिकर्णिका घाट पर यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। जिसमें कहा जाता है कि राजा मानसिंह ने मुगल सम्राट अकबर के काल में बाबा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस दौरान उन्होंने एक संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया था। राज मान सिंह के निमंत्रण पर कोई भी संगीतज्ञ मणिकर्णिका पर संगीतांजलि देने को तैयार नहीं हुआ। हिन्दू धर्म में हर पूजन या शुभ कार्य में संगीत जरुर होता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुखी हुए। यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगरवधुओं तक भी जा पहुंचा। तब नगर वधुओं ने डरते—डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता है तो काशी की सभी नगर वधूएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसान को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती है। यह संदेश पा कर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और ससम्मान उन्होंने नगर वधुओं को आमंत्रित किया। तब से यह परम्परा चली आ रही है।

वहीं, दूसरी तरफ नगर वधुओं के मन मे यह आया की अगर वह इस परम्परा को निरन्तर बढ़ाती हैं तो उन्हें इस नारकीय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा। गुलशन कपूर ने बताया कि नगर वधुएं कहीं भी रहें चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को मणिकर्णिका घाट पर स्वयं आ जाती है। घाट पर राग-विराग के इस मेले में हजारों काशीवासी भागीदारी करते है। घाट पर अतिथियों का स्वागत मंदिर के अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता एवं मंदिर व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने किया ।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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