झुंझुनू, 25 जुलाई (Udaipur Kiran) । कारगिल विजय दिवस मनाने से एक दिन पहले झुंझुनू जिले में एक और शहीद जवान सितेंद्र सिंह सांखला को अंतिम विदाई दी गयी। झुंझुनू जिले में एक सप्ताह पूर्व ही एक साथ दो शहीदो की चिता जली थी। उनकी चिता की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी की एक जवान और शहीद हो गया। राजस्थान के झुंझुनू जिले के सूरजगढ़ क्षेत्र के डांगर गांव के शहीद जवान सितेंद्र सिंह सांखला (23) की पार्थिव देह आज गुरूवार को दोपहर करीब 3.45 बजे उनके गांव डांगर पहुंची। गांव के बाहर युवाओं ने पुष्प वर्षा की। वहीं गांव के चैक में बड़ी संख्या में महिलाएं शहीद की तिरंगा यात्रा देखने के लिए उमड़ी। शहीद सितेंद्र की पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए घर के आंगन में रखा गया। बेटे सितेंद्र का पार्थिव शरीर जैसे ही घर के आंगन में आया मां प्रेम देवी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सकीं। वे फूट-फूटकर रोने लगीं। बार-बार बेटे को पुकार रही हैं। रोते हुए उन्होंने कहा मुझे मेरा लाल चाहिए। इससे पहले दोपहर करीब पौने दो बजे शहीद की पार्थिव देह सेना की गाड़ी से झुंझुनू के सूरजगढ़ रोड बाइपास पहुंची।
शहीद सितेंद्र अमर रहे के नारे के साथ गांव तक 9 किलोमीटर लंबी तिरंगा यात्रा निकाली गई। यात्रा में शामिल गाड़ियों के काफिले में देशभक्ति गाने बज रहे थे। लोग जवान सितेंद्र जिंदाबाद और वंदेमारतम, भारत माता की जय के नारे लगाते चल रहे हैं। सूरजगढ़ के डांगर गांव स्थित शहीद के घर से करीब 150 मीटर की दूरी पर स्थित कृषि भूमि पर अंतिम संस्कार किया गया। झुंझुनू की पूर्व सांसद संतोष अहलावत, जिला कलेक्टर चिन्मयी गोपाल शहीद के गांव डांगर पहुंच कर शहीद के पिता को ढांढस बंधाया। सितेंद्र के परिवार में पिता पूर्ण सिंह सांखला, बड़े भाई मनेंद्र,मां प्रेम देवी, दादी पाना बाई हैं। दादा उमराव सिंह का तीन साल पहले निधन हो चुका है। बड़े भाई मनेंद्र जोधपुर में प्राइवेट शिक्षण संस्थान में टीचर हैं। साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। पिता खेती-बाड़ी करते हैं।सितेंद्र सिंह सांखला के चाचा पवन सिंह सांखला ने बताया कि मुंबई स्थित नेवल डॉकयार्ड में मरम्मत के दौरान 21 जुलाई को आईएनएस ब्रह्मपुत्र में आग लगी थी। अगले दिन नेवी के अधिकारियों ने सूचना दी कि हादसे के बाद से ही सितेंद्र लापता है। उसकी तलाश की जा रही है। 24 जुलाई को तड़के 3 बजे सितेंद्र का शव नेवी के गोताखोरों ने निकाला। शहीद के भाई मनेंद्र ने बताया कि 21 जुलाई की रात को सितेंद्र से आखिरी बार बात हुई थी। तब उसने कहा था कि जहाज पर आग लग गई है। तू घर पर बात कर लेना। अब मैं बात नहीं कर पाऊंगा।
आग लगने की घटना के बाद आईएनएस ब्रह्मपुत्र एक तरफ झुक गया था। इस आग को 16 घंटे बाद बुझाया जा सका था। जिस वक्त हादसा हुआ, तब आईएनएस ब्रह्मपुत्र पर लगभग 300 अधिकारी और अन्य कर्मचारी मौजूद थे। सभी को सुरक्षित निकाल लिया गया। लेकिन सितेंद्र लापता था। डांगर गांव के मधुप सिंह ने बताया कि सितेंद्र सिंह सांखला 2018 में नेवी में नाविक के पद पर भर्ती हुए थे। अभी 3 महीने पहले मार्च में ही चचेरे भाई की हादसे में मौत के बाद सितेंद्र गांव आकर गए थे। उनके परिवार में पिता पूर्ण सिंह और माता प्रेम देवी हैं। ये लोग गांव में ही रहते हैं। उनकी आजीविका खेती-बाड़ी पर निर्भर है। सितेंद्र का एक बड़ा भाई मनेन्द्र सिंह (25) जोधपुर में निजी शिक्षण संस्था में शिक्षक हैं। साथ ही वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहे हैं।
डांगर गांव के पहले सैनिक महावीर सिंह सांखला थे। वे 1968 में 14 कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। वे 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में से लापता हो गए थे। उनके बारे में आज तक कोई सूचना नहीं आई है। गांव में उनका स्मारक भी बनाया गया है। शहीद के गांव डांगर में करीब 350 घर हैं। अभी गांव के 100 से ज्यादा युवा तीनों सेनाओं में सेवाएं दे रहे हैं। 50 से ज्यादा जवान सेना से रिटायर हो चुके हैं।
(Udaipur Kiran) / रमेश