Uttar Pradesh

मराठा जननायक तिलक ने घंटाघर सिद्धिविनायक मंदिर का किया था भूमि पूजन

मराठा जननायक तिलक ने घंटाघर सिद्धिविनायक मंदिर का किया था भूमि पूजन

कानपुर, 06 सितम्बर (Udaipur Kiran) । महानगर के सबसे घने इलाके घंटाघर के समीप ही सुतरखाने क्षेत्र में स्थित एक लगभग 104 साल पुराना गणेश मन्दिर जो शहर के साथ ही आसपास के जिलों में सिद्धिविनायक भगवान के नाम से प्रसिद्ध है। यहां दर्शन मात्र से ही भक्तों का कल्याण सुनिश्चित है। माना जाता है इस मन्दिर में लगातार 40 दिनों तक भगवान की अराधना करने के बाद भक्त की हर मन्नत पूरी हो जाती है। मन्दिर में प्रत्येक बुधवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर उस समय बना जब देश में अंग्रेजों का शासन था और अंग्रेज यहां पर लाला रामचरण को मंदिर नहीं बनने दे रहे थे। इस पर लाला रामचरण ने मराठा जननायक बाल गंगाधर तिलक से आग्रह किया और उन्होंने मंदिर का भूमि पूजन किया था।

घंटाघर इलाके के सुतरखाने में मौजूद गणेश मंदिर पूरे यूपी का ऐसा इकलौता मंदिर है जिसका स्वरुप एक तीन खंड के मकान जैसा है। इसके साथ ही यहां भगवान गणेश के आठ रुप एक साथ मौजूद है। 1921 में बने इस मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिए ट्रस्टियों ने साल 2000 से कार्य शुरु करवाया जिसमें सात साल से अधिक का समय लगा जिसमें भगवान के कई स्परुपों का चित्रण मूर्तियों के माध्यम से बखूबी किया गया है। यही नहीं गणेश महोत्सव के दौरान तो भक्तों की संख्या में खासा इजाफा हो जाता है। इस मंदिर का भूमि पूजन मराठों के सबसे बड़े जननायक व आजादी के प्रणेता रहे बाल गंगाधर तिलक ने किया था।

मंदिर के ट्रस्टी खेमचन्द्र गुप्त के मुताबिक बाल गंगाधर तिलक जब 1908 में कानपुर आए तब हमारे बाबा लाला रामचरण ने उनके सामने गणेश मंदिर की स्थापना की बात कही। उस समय बाल गंगाधर ने अपनी व्यस्तता को लेकर अगली बार आकर भूमि पूजन करने के साथ गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना करने की बात कही थी। मगर बाल गंगाधर तिलक को कानपुर आने में करीब तेरह साल लग गए और बाबा की जिद थी कि भूमि पूजन के साथ गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना वो उन्ही से करवाएंगे। 1921 में बाल गंगाधर तिलक ने भूमि पूजन तो किया लेकिन वह मूर्ति स्थापित कराने के लिए रुक नहीं पाए थे। क्योंकि पूजन के बाद किसी आवश्यक कार्य से उन्हे मुम्बई वापस जाना पड़ा था।

महाराष्ट्र के व्यापारियों ने मंदिर बनाने की दी थी सलाह

मंदिर के मुख्य ट्रस्टी खेमचन्द्र गुप्त ने बताया कि उनके पूर्वजों से कुछ महाराष्ट्र के व्यापारियों से व्यापारिक रिश्ते थे ज्यादातर व्यापार के सिलसिले में गणेश उत्सव के समय कानपुर आया जाया करते थे। इन लोगों की भगवान गणेश में अटूट आस्था थी और वो भी उस समय गणेश महोत्सव के समय घर में ही भगवान गणेश के प्रतिमा की स्थापना कर पूजन करते थे और आखि‍री दिन बड़े ही धूमधाम से विसर्जन करते थे। उन दिनों पूरे कानपुर में यहां अकेले गणेश उत्सव मनाया जाता था। इनकी भक्ति को देख इनके महाराष्ट्र वाले दोस्तों ने उस खाली प्लाट में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर वहां मंदिर बनवाने का सुझाव दिया था। हमारे बाबा लाला रामचरण के पास एक 90 स्क्वायर फीट का प्लाट घर के बगल में खाली पड़ा था। जहां पर उन्होंने 1908 में मंदिर निर्माण करवाने की योजना बनाई। जब अंग्रेज सैनिकों को यहां मंदिर निर्माण और गणेश जी की मूर्ति के स्थापना की जानकारी मिली तो उन्होंने मंदिर निर्माण पर रोक लगा दी थी। अंग्रेज अधिकारियों ने इसके पीछे तर्क दिया कि पास में मस्जिद होने के कारण यहां मंदिर नहीं बनवाया जा सकता है। क्योंकि कानून के मुताबिक किसी भी मस्जिद से 100 मीटर के दायरे में किसी भी मंदिर का निर्माण नहीं किया जा सकता।

अंग्रेज अधिकारियों के मना करने के बाद रामचरण ने कानपुर में मौजूद अंग्रेज शासक से मुलाकात की मगर बात नहीं बनी। इसकी जानकारी बाल गंगाधर तिलक को हुई तब उन्होंने दिल्ली में अंग्रेज के बड़े अधिकारी से मुलाकात की और मंदिर स्थापना के साथ मूर्ति स्थापना की बात कही। इस पर दिल्ली से चार अंग्रेज अधिकारी कानपुर आए और स्थिति का जायजा लिया था। अंग्रेज अधिकारी ने वहां गणेश प्रतिमा की स्थापना करने की अनुमति तो दी, मगर इस प्लॉट पर मंदिर निर्माण की जगह दो मंजिला घर बनवाने की बात कही जिसके ऊपरी खंड पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करने को कहा गया था। ऐसे में अनुमति मिलने के बाद बाबा रामचरण ने जिद कर लिया कि बाल गंगाधर तिलक ही मंदिर का भूमि पूजन और गणेश प्रतिमा की स्थापना करेंगे। आखिरकार कानपुर आकर तिलक ने मंदिर का भूमि पूजन तो किया पर व्यस्तता के चलते गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं कर सके। पहले तल पर भगवान गणेश की प्रतिमा को रामचरण गुप्त ने स्थापित किया। इस तीन मंजिल खंड में नीचे वाले खंड पर मन्दिर का कार्यालय और आने वाले श्रद्धालुओं के जूते चप्पल रखने का स्थान दिया गया। नगर के सबसे घने रिहायशी क्षेत्र में गणपति के प्रसिद्ध इस मंदिर की खासियत है यहां विराजमान गणपति के कई रुप देखे जा सकते हैं। इस मन्दिर की सबसे बड़ी खूबी है कि यहां भक्तों को दस सिर वाले गणपति के भी दर्शन आसानी से हो जाते हैं।

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(Udaipur Kiran) / अजय सिंह

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