Uttrakhand

महर्षि वाल्मीकि आयुर्वेद और जड़ी बूटियों के अदभुत ज्ञाता : अवनीश उपाध्याय

महर्षि बागमीकी का चित्र

हरिद्वार, 17 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । ऋषिकुल राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज में वाल्मीकि जयंती पर उनके द्वारा रचित रामायण में आयुर्वेद, जड़ी बूटी और वनस्पतियों के ज्ञान और वर्णन पर परिचर्चा की गई।

कॉलेज की औषधि निर्माण शाला के प्रमुख डॉक्टर अश्वनी उपाध्याय ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि की रचना, रामायण, केवल एक साहित्यिक कृति नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली और वनस्पति विज्ञान का एक अनमोल खजाना भी है। इस महाकाव्य में आयुर्वेद, स्वास्थ्य और जड़ी-बूटियों के बारे में कई महत्वपूर्ण संदर्भ प्रस्तुत किए गए हैं। महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण विभिन्न प्रजातियों के पौधों की वानस्पतिक पहचान और उनके महत्व को स्पष्ट करने में बहुत उपयोगी है। रामायण में कई औषधीय पौधों जैसे तुलसी, संजीवनी बूटी, अश्वगंधा, नीम आदि का उल्लेख महर्षि वाल्मीकि ने किया है। महर्षि वाल्मीकि आयुर्वेद, जड़ी बूटी एवं वनस्पतियों के अदभुत ज्ञाता थे।

प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग विज्ञान साधिका रुचिता त्रिपाठी ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि का योगदान केवल साहित्यिक नहीं है, बल्कि उनके द्वारा प्रस्तुत आयुर्वेद, वनस्पति विज्ञान और स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं ने भारतीय चिकित्सा पद्धति को समृद्ध किया है। उनके ज्ञान ने हमें यह सिखाया कि प्रकृति का सम्मान करना आवश्यक है और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जड़ी-बूटियों का उपयोग कितना महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, वाल्मीकि रामायण में संदर्भित ज्ञान न केवल प्राचीन है, बल्कि आज के समय में भी अत्यधिक प्रासंगिक है। हमें इस ज्ञान को आत्मसात करना चाहिए और इसे अपनी जीवनशैली में अपनाना चाहिए।

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(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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