
-राजस्थान हाईकोर्ट ने 23 साल पुराने केस को किया खत्म
जोधपुर, 15 फरवरी (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस फरजंद अली ने करीब 23 साल से पेंडिंग आपराधिक केस को खत्म कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ कोर्ट आने वालों को ही नहीं, इससे सभी को राहत मिलेगी। जब कोई मामला न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का प्रतीक बन जाए तो अदालत केवल उन अभियुक्तों को ही नहीं, बल्कि उन सभी को राहत देने के लिए सक्षम है, जिन पर मामला पेंडिंग है, भले ही उन्होंने अदालत का रुख न किया हो।
बता दें कि साल 2001 में हनुमानगढ़ के भादरा संरक्षित वन क्षेत्र से बिना वन विभाग की अनुमति के पेड़ काटकर रोड बनाने का मामला दर्ज हुआ था। पेड़ों को काट सडक़ बनाने पर ठेकेदार सहित 17 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया था। जज ने आदेश में लिखा कि इस मामले में मुकदमे की शुरुआत की बात तो दूर, अब तक बिना किसी प्रगति के आपराधिक शिकायत लंबे समय तक पेंडिंग रहना निश्चित रूप से अभियुक्त के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। राज्य सरकार ने अपने अलग-अलग विभागों के बीच समन्वय का ध्यान क्यों नहीं रखा। अगर वन विभाग या राज्य के किसी भी अंग द्वारा सार्वजनिक निर्माण विभाग को सडक़ निर्माण के लिए पेड़ों को न काटने की सूचना दी गई होती, तो स्थिति अलग हो सकती थी। इस मामले में दोषी कौन है, यह भी अभी तक पता नहीं चल पाया है, जबकि इस बात को 23 साल से अधिक समय बीत चुके हैं।
यह था मामला
तीस अगस्त 2002 को क्षेत्रीय वन अधिकारी ने भादरा न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष 17 व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया कि अमर सिंह कैनाल से निकलने वाली और महाराणा गांव तक फैली महाराणा डिस्ट्रीब्यूटरी, संरक्षित वन क्षेत्र से होकर गुजरती है। जून 2001 में पीडब्ल्यूडी ने वन विभाग को सूचित किए बिना गांव जनाना से महाराणा तक सडक़ बनाना तय किया। जुलाई-अगस्त 2001 के दौरान बिना वन विभाग से अनुमति लिए पीडब्ल्यूडी द्वारा नियुक्त ठेकेदारों ने महाराणा डिस्ट्रीब्यूटरी के तटबंधों के किनारे पेड़ों को मजदूर लगाकर काट दिया, जो कि कानूनी रूप से संरक्षित थे। चूंकि पेड़ों को काटने का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था और न ही काटने या हटाने वालों की पहचान ही हो सकी, इसलिए वन विभाग ने मजदूरों, ठेकेदारों, पीडब्ल्यूडी और सिंचाई विभाग के अधिकारियों को आरोपित मान कोर्ट में शिकायत दर्ज करा दी थी।
यथावत रहा मुकदमा
17 व्यक्तियों पर राजस्थान वन अधिनियम, 1953 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया था। इस संबंध में कुल 17 व्यक्तियों में से सात की मौत हो चुकी है जबकि बाकी रहे व्यक्तियों में से हरियाणा के हिसार में सेक्टर 13 पी निवासी हरिसिंह पुत्र सूरजभान और बीकानेर त्यागी वाटिका निवासी अशोक कुमार खन्ना पुत्र एचएल खन्ना ने सीनियर वकील विनीत कुमार जैन और प्रवीण व्यास के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसमें हाईकोर्ट ने पाया कि इन मुकदमों में न तो सुनवाई की कोई सार्थक प्रगति हुई, न ही किसी आरोपी के खिलाफ ठोस साक्ष्य ही उपलब्ध थे।
कोर्ट ने यह की टिप्पणी
न्यायालय ने कहा कि अभियुक्तों का 23 वर्षों तक मुकदमे का सामना करना, मानसिक प्रताडऩा झेलना और बिना किसी ठोस आधार के न्यायालय के चक्कर लगाना, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि मुकदमे की लंबी अवधि और साक्ष्यों की अनुपलब्धता के कारण अभियुक्तों को दोषी ठहराने की कोई वास्तविक संभावना नहीं रह गई थी। तब कोर्ट ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए पूरे आपराधिक मामले को ही समाप्त कर दिया। इससे उन लोगों को भी राहत मिली है, जो अदालत तक पहुंचे ही नहीं थे।
(Udaipur Kiran) / सतीश
