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लोकमाता अहिल्याबाई होलकर भारतीय संस्कृति की जीवंत मूर्ति : सुनील आंबेकर

नई दिल्ली स्थित साहित्य अकादेमी में बुधवार द लोकमाता: लाइफ एंड लेगेसी ऑफ अहिल्या बाई होलकर पुस्तक के विमोचन करते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर

-द लोकमाता: लाइफ एंड लेगेसी ऑफ अहिल्या बाई होलकर पुस्तक का विमोचन

नई दिल्ली, 15 मई (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की प्रशंसा करते हुए उन्हें भारतीय संस्कृति की जीवंत मूर्ति बताया है। यह बात उन्होंने नई दिल्ली स्थित साहित्य अकादेमी में बुधवार को आयोजित द लोकमाता: लाइफ एंड लेगेसी ऑफ अहिल्या बाई होलकर नामक पुस्तक के विमोचन में कही।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य आशा लाखड़ा रहीं। सुनील आंबेकर ने कहा कि देवी अहिल्याबाई के शासनकाल को केवल ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं, बल्कि समकालीन भारत की नैतिक और सांस्कृतिक चुनौतियों के समाधान के रूप में देखे जाने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई का शासन केवल राजनैतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक था। उन्होंने भारत में मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया, धर्मनिष्ठ आचरण को प्रोत्साहित किया और लोक-परंपराओं का संरक्षण किया। यह पुस्तक डॉ. प्रितीश और प्रो. बंदना झा के संपादन में प्रकाशित हुई है। इसमें सात विद्वानों के शोध आधारित लेख संकलित हैं। पुस्तक लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन, शासन और सांस्कृतिक योगदान को गहराई से समझने का प्रयास करती है।

कार्यक्रम का संचालन पुस्तक डॉ अपर्णा द्वारा किया है। कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. बंदना झा के विद्वतापूर्ण और प्रेरणादायक स्वागत भाषण से हुई। इसमें उन्होंने पुस्तक की रचना-प्रक्रिया, संरचना और उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक केवल ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रह नहीं, बल्कि लोकमाता की बहुआयामी छवि को समग्र रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है।

प्रो. झा ने पुस्तक के सभी सात लेखकों (डॉ. अपर्णा, सुकृत बनर्जी, संदीप, डॉ. प्रितीश, चिराग, शुभम शेखर और स्वयं प्रो. बंदना झा) के कार्यों को विस्तार से रेखांकित करते हुए बताया कि किस तरह हर अध्याय लोकमाता के जीवन के एक विशेष पक्ष को सामने लाता है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य आशा लाखड़ा ने अपने संबोधन में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर को ‘आदर्श जननायिका’ के रूप में चित्रित किया। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई का शासन केवल प्रशासनिक दक्षता का उदाहरण नहीं था, बल्कि वह एक समावेशी और संवेदनशील समाज निर्माण की दिशा में ठोस प्रयास किया।

कार्यक्रम के अंत में पुस्तक के संपादक डॉ. प्रीतीश ने अत्यंत संवेदनशील और भावभीने शब्दों में धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक केवल ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन नहीं है, बल्कि यह एक साधना है—उस महान नारी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व को समझने और सहेजने की, जिन्होंने शासन को सेवा का माध्यम बनाया।

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(Udaipur Kiran) / धीरेन्द्र यादव

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