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ख्वाजा साहब की दरगाह दीवान पद नियुक्ति विवाद फिर गहराया

ख्वाजा साहब की दरगाह दीवान पद नियुक्ति विवाद फिर गहराया
ख्वाजा साहब की दरगाह दीवान पद नियुक्ति विवाद फिर गहराया
ख्वाजा साहब की दरगाह दीवान पद नियुक्ति विवाद फिर गहराया

-राजस्थान हाईकोर्ट ने संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी किए, अगली सुनवाई जुलाई माह में

अजमेर, 9 मई (Udaipur Kiran) । अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह के दीवान पद नियुक्ति विवाद एक बार फिर सुर्खियों में आया है।

राजस्थान हाईकोर्ट में दरगाह के खादिम आतिफ काजमी ने मौजूदा दीवान जैनुल आबेदीन की नियुक्ति की वैधता को चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए हैं। याचिकाकर्ता आतिफ काजमी की पैरवी अधिवक्ता रिध्विक दोसी और हर्षित मित्तल कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने जवाब के लिए आठ सप्ताह का समय निर्धारित किया है। अगली सुनवाई जुलाई माह में होगी।

याचिका में कहा गया कि दीवान के पद को विरासत का बताकर न्यायिक आदेश प्राप्त किया गया था, जबकि ऐतिहासिक परंपराओं और दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम 1955 के प्रावधानों के अनुसार यह दावा असत्य है। इस पूरे नियुक्ति विवाद के दौरान दरगाह कमेटी ने भी मौन नीति अपनाई रखी, जिससे दोनों पक्षों को धोखाधड़ी और मिलीभगत करने में आसानी हुई। याचिका में 7 जुलाई 1975 को इल्मुद्दीन अलीमी तथा 24 जनवरी, 1981 को वर्तमान दीवान जैनुल आबेदीन की नियुक्ति के लिए जारी सरकारी अधिसूचनाओं को भी चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि वर्ष 1948 में शुरू हुआ दीवानी मुकदमा जो अंतत: सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा, उस में दोनों पक्षों ने यह झूठा दावा किया कि दीवान का पद वंशानुगत है और प्राइमोजेनिचर (ज्येष्ठाधिकार) के नियम पर आधारित है। यह सब अदालत को गुमराह करने के उद्देश्य से किया गया और अनुकूल निर्णय धोखाधड़ी के आधार पर प्राप्त कर लिया।

याचिकाकर्ता के अनुसार दीवान बनने के लिए आवश्यक योग्यताएं यह है कि पूर्व दीवान के पुरुष वंश से सबसे निकट संबंधी हो, नजीब-उत-तरफैन (दोनों पैतृक और मातृक पक्षों से कुलीन) हो और हम कुफ (सामान्य या समान स्तर से कुलीन) महिला की संतान हो। उपरोक्त महत्वपूर्ण तथ्य जानबूझकर अदालत से छिपाए गए जिस कारण याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता आतिफ काजमी ने बताया कि देश में अंग्रेजी शासन के दौरान 9 फरवरी 1923 को तत्कालीन अजमेर मेरवाड़ा राज्य के कमिश्नर सीसी वाटसन ने ख्वाजा साहब की दरगाह में दीवान की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे थे। तब 19 आवेदकों में मौजूदा दीवान आबेदीन के दादा इकरामुद्दीन ने भी आवेदन किया था। लेकिन तब अंग्रेज कमिश्नर वाटसन ने इकरामुद्दीन को दीवान पद के योग्य नहीं माना और तब आले रसूल को दीवान नियुक्त किया। लेकिन देश के विभाजन के समय आले रसूल पाकिस्तान चले गए। इसके बाद गलत तथ्यों के आधार पर इलमुद्दीन अलिमी ने दीवान का पद हासिल किया।

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(Udaipur Kiran) / संतोष

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