Jammu & Kashmir

सहरख्वान, ढोल बजाने वाले कश्मीर में रमज़ान की सदियों पुरानी परंपरा को जीवित रखे हुए

श्रीनगर, 09 मार्च (Udaipur Kiran) । रमज़ान के साथ सहरख्वान, ढोल बजाने वाले जो लोगों को सुबह के भोजन सेहरी के लिए जगाते हैं कश्मीर के शहरों और कस्बों में आते हैं।

दूरदराज के गांवों से आने वाले सैकड़ों लोगों ने मोबाइल फोन और अलार्म घड़ियों जैसे आधुनिक गैजेट्स के सर्वव्यापी होने के बावजूद सदियों पुरानी परंपरा को जीवित रखा है।

अनादि काल से उनके ढोल की थाप कश्मीरियों को उस एक भोजन के लिए जगाती रही है जो उन्हें दिन के दौरान उपवास करने के लिए प्रेरित करता है। बरज़ुल्ला के निवासी मोहम्मद शफी मीर ने कहा कि पवित्र महीने के दौरान सहरख्वानों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रमज़ान में भी बहुत सारी कठिनाइयाँ होती हैं। रात 10.30 बजे के आसपास तरावीह (लंबी देर रात की नमाज़) खत्म करते हैं और जब तक सोने जाते हैं तब तक आधी रात हो चुकी होती है। सहरी और फज्र (सुबह की नमाज़) की नमाज़ के लिए चार घंटे बाद फिर से जागना थकाऊ होता है। मोबाइल या घड़ी के अलार्म की तरह, उनके ड्रम की आवाज़ को बंद नहीं कर सकते।

प्रत्येक सहरख्वान एक या दो मोहल्लों के क्षेत्र में रहता है। कुछ के लिए यह आजीविका का स्रोत है। दूसरों के लिए यह भक्ति का कार्य है। उनमें से कई लोग रमज़ान के लिए 11 महीने तक इंतज़ार करते हैं क्योंकि इस महीने की कमाई से उनके परिवार का पूरा साल चलता है।

कुपवाड़ा जिले के कलारूस के अब्दुल मजीद खान ने कहा कि मैं साल के बाकी दिनों में मजदूर के तौर पर काम करता हूं लेकिन उन 11 महीनों में मेरी कमाई अभी भी रमजान के दौरान की कमाई से कम है। खान, जो 20 साल से ढोल बजा रहे हैं ने कहा कि उनका काम सुबह 3 बजे शुरू होता है और सुबह 5 बजे खत्म होता है। उन्होंने कहा कि रमजान के आखिर में लोग हमें दिल खोलकर पैसे देते हैं। अल्लाह ने उन्हें आशीर्वाद दिया है। मोहम्मद महबूब खटाना जो हर रमजान में 22 साल से श्रीनगर आते हैं ने कहा कि वह अपने परिवार के लिए जीविका कमाते हैं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि लोगों को सहरी के लिए जगाने के नेक काम के लिए उन्हें अल्लाह से इनाम मिलेगा। उन्होंने कहा कि हम लोगों को रोजे के लिए जगाते हैं। हम यह सिर्फ आजीविका के लिए नहीं करते बल्कि परलोक में इनाम की उम्मीद में भी करते हैं। गुलाम रसूल पयार 50 साल से भी ज्यादा समय से इस काम में लगे हैं और पुराने शहर में एक जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उन्होंने कहा कि वित्तीय लाभ एक बोनस है क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य लोगों की सेवा करना है।

उन्होंने कहा कि मैं पिछले 50 सालों से यह काम कर रहा हूं। मैं निवासियों को भुगतान के लिए परेशान नहीं करता क्योंकि मुझे लगता है कि बड़ा इनाम सर्वशक्तिमान के पास है।

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(Udaipur Kiran) / राधा पंडिता

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