Jammu & Kashmir

कश्मीर ने छह अतिरिक्त पारंपरिक शिल्पों के लिए जीआई पंजीकरण प्राप्त करने की प्रक्रिया की शुरू

श्रीनगर, 9 जून (Udaipur Kiran) । स्थानीय कारीगरों की अनूठी शिल्पकला की रक्षा के अपने प्रयासों को जारी रखते हुए, हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग कश्मीर ने छह अतिरिक्त पारंपरिक शिल्पों के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) पंजीकरण प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू की है।

इस पहल का उद्देश्य कम-ज्ञात कला रूपों को पुनर्जीवित करना और विशिष्ट वैश्विक बाज़ारों में उनकी भागीदारी को बढ़ाना है।

जीआई टैगिंग के लिए पहचाने गए शिल्पों में कॉपरवेयर (स्थानीय रूप से कंदकारी के रूप में जाना जाता है) चांदी के बर्तन, हाउसबोट शिल्प कौशल, टेपेस्ट्री, कश्मीर तिला कढ़ाई और आरी स्टेपल कढ़ाई शामिल हैं।

विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि हमने छह और शिल्पों के लिए चेन्नई में जीआई रजिस्ट्री को औचित्य और डोजियर जमा कर दिए हैं। टैगिंग प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं। यह प्रक्रिया कठोर है इसमें विस्तृत जांच शामिल है और इसमें काफी समय लगता है। तांबे के बर्तन एक पारंपरिक कश्मीरी शिल्प है जिसमें तांबे से बने जटिल रूप से डिजाइन किए गए बर्तन और सजावटी सामान बनाना शामिल है।

चांदी के बर्तन एक परिष्कृत और सुरुचिपूर्ण शिल्प है जिसमें चांदी से बने जटिल रूप से डिजाइन किए गए सजावटी और उपयोगी सामान बनाना शामिल है।

टेपेस्ट्री कश्मीर में प्रचलित एक पारंपरिक शिल्प है जिसमें ऊनी धागों का उपयोग करके सूती कपड़े पर जटिल डिजाइनों को हाथ से बुनना शामिल है।

जीआई पंजीकरण जालसाजी के खिलाफ कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है अनधिकृत उपयोग को रोकता है और उत्पादों की उत्पत्ति को प्रमाणित करके निर्यात को बढ़ावा देता है। अधिकारी ने कहा कि यह भी सुनिश्चित होता है कि आर्थिक लाभ वास्तविक स्थानीय कारीगरों तक पहुंचे।

जम्मू और कश्मीर में जीआई-पंजीकृत हस्तशिल्प की कुल संख्या 18 है। इससे पहले इस साल मार्च में आठ शिल्प कश्मीर नमदा, कश्मीर गब्बा, कश्मीर विलो बैट, कश्मीर ट्वीड, क्रूवेल, चेन स्टिच, शिकारा और वाग्गुव को जीआई का दर्जा दिया गया था। इससे पहले प्रसिद्ध कश्मीरी सोज़नी, पश्मीना, कानी शॉल, पेपर माचे, खतमबंद और अखरोट की लकड़ी की नक्काशी को पहले ही जीआई प्रमाणन मिल चुका है। अधिकारियों का कहना है कि जीआई टैगिंग के लिए नए प्रयास से तिला कढ़ाई और तांबे के बर्तन जैसे लुप्त हो रहे शिल्प को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी साथ ही हाउसबोट बनाने और टेपेस्ट्री बुनाई जैसे विशिष्ट कौशल को भी संरक्षित किया जा सकेगा जो विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहे हैं।

(Udaipur Kiran) / राधा पंडिता

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