
धमतरी, 24 मार्च (Udaipur Kiran) । कर्मा माता तैलीय साहू समाज की पूजनीय है। चैत्र माह की एकादशी को प्रतिवर्ष जयंती मनाया जाता है। कर्मा माता तैलीय समाज के अलावा समस्त जनमानस के लिए पुण्य का कार्य किया है। कर्मा माता का जन्म राजस्थान राज्य की नागौर जिले की मकराना तहसील की कालवा ग्राम की जीवन राम डूडी के घर 1615 ईस्वी में पुत्री के रूप में जन्म हुआ। माता-पिता जन्म से धार्मिक पूजा पाठ करने वाले कृष्ण भक्त थे। घर में भगवान श्री कृष्ण की मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित की। प्रतिदिन भगवान की पूजा अर्चना कर भोग लगाने के बाद भोजन ग्रहण करना नृत्य नियम था। कर्मा बाई अपने माता-पिता को प्रतिदिन पूजा-पाठ करते देखा। वह भी धार्मिक कार्य पूजा पाठ में आस्था रखती थी।
कर्मा बाई का बचपन भक्ति भाव एवं सांस्कृतिक हो गया। समय बीतता गया कर्मा बाई 13 वर्ष की हो गई। एक बार पिता जीवन राम अपनी पत्नी के साथ कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए पुष्कर जाना चाहते थे। घर में भगवान श्री कृष्ण की नित्य पूजा पाठ एवं भोग लगाने की जिम्मेदारी कर्मा बाई को देखकर तीर्थ यात्रा के लिए चले गए। कर्मा बाई सुबह स्नान कर भगवान की पूजा अर्चना कर भोग लगाकर घर के कार्य में लग गई। कर्मा बाई कुछ समय बाद देखती कि भगवान भोग ग्रहण नहीं किया है। जब तक भोग ग्रहण नहीं करेगा तब तक वह स्वयं भोजन नहीं करेगी भगवान को भोजन ग्रहण करने इंतजार करते सुबह से दोपहर बाद शाम होने वाली थी। कर्मा बाई भगवान से बार-बार प्रार्थना करती की है प्रभु भोग ग्रहण कीजिए हमसे क्या गलती हो गई है। भगवान भोग ग्रहण नहीं करने से कर्मा बाई काफी दुखी हो गई। कर्मा बाई दुखी मन से भगवान को भोग में स्वादिष्ट नहीं होने की आशंका से खिचड़ी में गुड़ घी का मीठा भोग लगाया। मंदिर से आवाज आई की पट बंद होने पर भोजन ग्रहण करेगा। कर्मा बाई ने मंदिर का पट बंद कर बैठ गई। कुछ देर बाद भोग की थाली खाली हो गई। भगवान की खिचड़ी खाने से कर्मा बाई प्रसन्न हो गई। कर्मा बाई प्रतिदिन प्रात: उठकर स्नान करके पूजा पाठ पश्चात भगवान को भोग लगाती। भगवान भोग ग्रहण करते थे। कर्मा बाई के माता पिता कुछ दिन बाद तीर्थ यात्रा कर घर वापस आए। चिंतित माता-पिता ने पूछा कि हमारे नहीं रहने पर भगवान को ठीक से भोग ग्रहण कराया कि नहीं। कर्मा बाई ने बीती घटना को बताया तथा भगवान प्रतिदिन भोग ग्रहण कर खाली खाली हो जाने की बात बताई। माता-पिता आश्चर्य चकित हो गए। भगवान का दर्शन कर पुण्य लाभ के लिए हम लोगों को इतने समय लग गया। कम समय में कर्मा बाई ने भगवान का साक्षात दर्शन कर खिचड़ी का भोग ग्रहण कराने में सफल हो गई। उसी दिन से कर्मा बाई से कर्मा माता बनाकर भगवान को खिचड़ी का भोग लगाने की परंपरा प्रारंभ हो गई। इस वर्ष भी चैत्र माह की एकादशी मंगलवार को कर्मा माता की जयंती मनाई जाएगी।
(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा
