



कानपुर, 13 मार्च (Udaipur Kiran) । कानपुर की होली जिस प्रकार पूरे देश में अपना अलग स्थान रखती है ठीक उसी प्रकार यहां का रंग व गुलाल भी वृंदावन से लेकर पश्चिम बंगाल तक उड़ता है। कई दशक से यहां पर सर्दी कम होते ही रंग व गुलाल बनाने का काम शुरु हो जाता है, फिर बाजार पहुंचकर ट्रांसपोर्ट के जरिये देश के कोने-कोने पर भेजा जाता है। यहां के रंग व गुलाल की सबसे बड़ी खासियत है आरारोट से तैयार किया जाता है, जिसको अधिक लोग पसंद करते हैं और अन्य जगहों की अपेक्षा सस्ता भी रहता है।
होली का त्योहार बिना रंगों के अधूरा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली के पर्व पर खेले जाने वाले रंग अबीर को कैसे तैयार किया जाता है? रंगों और खुशियों का त्योहार कहे जाने वाले होली के पर्व की तैयारी जोरो-शोरों पर है। शहर के दक्षिण इलाके यशोदा नगर और गोपाल नगर में इन दिनों होली खेलने के लिए अबीर, रंग व गुलाल को तैयार कर शहर और प्रदेश अन्य प्रदेशों के हिस्सों में भेजने का सिलसिला चल रहा है। जिसको लेकर व्यापारी ज्यादा से ज्यादा माल तैयार करने में लगे हुए हैं। इसीलिए कानपुर को रंगों का बादशाह भी माना जाता है।
हर चौथे घर पर बनता है रंग व गुलाल
यशोदा नगर और गोपाल नगर इलाके में कई जगहों पर अबीर और गुलाल बनाने का काम हो रहा है। जिधर भी नजर डालो अबीर और गुलाल के बड़े बड़े ढेर पर महिलायें और पुरुष काम करते हुए होली की तैयारी में जुटे हुए है। यहां पर अबीर और गुलाल पूरी तरह से नेचुरल रंगों द्वारा तैयार किया जाता है। जिसके बाद प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों में निर्यात किया जाता है। अबीर बनाने वाले कारीगर दीपक ने बताया कि यह कारखाना पिछले करीब दस सालों से चल रहा है। इस क्षेत्र के लगभग हर चौथे घर में अबीर और गुलाल बनाया जाता है। चूंकि यह इलाका शहर से हटकर है इसलिए यहां आराम से रंगों को सुखाया जाता है। इसे बनाने में विशेष ख्याल रखा जाता है। शहर से यह माल गाजियाबाद, बस्ती, मेरठ, लखनऊ, गोरखपुर, आगरा और मथुरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल तक भेजा जाता है।
ऐसे तैयार होता है अबीर
कारीगर अनुज ने बताया कि अबीर को तैयार करने के लिए हम लोग आरारोट का इस्तेमाल करते हैं और उसमे प्राकृतिक रंगों लाल, पीला, गुलाबी और हरे रंगों को मिलाते हैं। जिस रंग का माल देना होता है। उस रंग को आरारोट में मिलाकर उसे मशीन में डालकर मिलाने के दौरान उसमें पानी भी डालते हैं और जब सही तरीके से रंग मिल जाता है तो उसको मशीन से निकाल कर बाहर मैदान में सूखने के लिए डाल देते हैं। जिसे सूखने में करीब दो घंटे का समय लगता है। तब उसकी छनाई कराई जाती है। फिर उसमें सुगंध के लिए सेंट भी डाला जाता है और उसके बाद उसकी पचास किलो और तीस किलो की पैकिंग कर भेज दिया जाता है। आगे बताया कि इसके लिए दूसरे राज्यों के कारोबारी वसंत पंचमी से शहर में आने लगते हैं। इस बार मौसम अच्छा होने की वजह से गुलाल जल्दी तैयार हो गया तो निर्माताओं ने फोन कर खुद ही दूसरे राज्यों के कारोबारियों को बुला लिया।
(Udaipur Kiran) / मो0 महमूद
