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गुवाहाटी, 18 जुलाई (Udaipur Kiran) । देश के प्रमुख पत्रकार और ऑर्गनाइजर पत्रिका के प्रधान संपादक प्रफुल केतकर ने कहा है कि पत्रकारों को भेदभाव करने वाली ताकतों की साजिश के खिलाफ सतर्क रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में भाषा या धर्म कभी भी भौगोलिक विभाजन का आधार नहीं रहा। यह प्रक्रिया केवल ब्रिटिश काल और बाद में देश के विभाजन के दौरान शुरू हुई।
ऑर्गनाइजर पत्रिका के प्रधान संपादक प्रफुल केतकर ने गुरुवार को असम और पूर्वोत्तर के साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों में भाषा आधारित राष्ट्रवाद पर एक महत्वपूर्ण विश्लेषण दिया। प्रख्यात निबंधकार-पत्रकार ने कहा कि देश में भाषा और धर्म के आधार पर विभाजन के बीज व्यापक भारतीय भावना को कमजोर करने के लिए बोए गए।
वरिष्ठ पत्रकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गुवाहाटी स्थित केशवधाम में पत्रकारों से मौजूदा समय के कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की। उन्होंने मौजूदा हालात में पत्रकारों को लेखन और शब्दों या भाषा पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत बताई। उन्होंने पत्रकार समुदाय से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि पत्रकारों का अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय पहचान को चुनौती देने वाले विचारों को फैलाने में उपयोग न किया जाए।
ऑर्गनाइजर के प्रधान संपादक ने इस्लाम की आलोचना करने से परहेज करने के लिए तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की भी आलोचना की और कहा कि इस्लामोफोबिया जैसे शब्द नव-पूंजीवाद की देन हैं। भारतीय लोकतंत्र को आध्यात्मिक लोकतंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में विरोधी विचारधाराओं को स्वीकार करने की उदारता है।
वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि देश में सहिष्णु-असहिष्णु विमर्श के विपरीत सहिष्णुता बनाम स्वीकृति मानसिकता पर बहस की गुंजाइश है। उनके अनुसार, भारतीय दर्शन ने सहिष्णुता से आगे बढ़कर स्वीकृति को प्राथमिकता दी है। एक ऐसे दर्शन में जो नास्तिकों के साथ-साथ आस्तिक को भी पहचानता है, असहिष्णुता का कोई सवाल ही नहीं उठता।
इस चर्चा में गुवाहाटी स्थित कई समाचार एजेंसियों के पत्रकारों के साथ-साथ कई वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकारों ने भी भाग लिया, जिसने भविष्य के लिए महत्वपूर्ण चर्चाओं का मार्ग प्रशस्त किया।
(Udaipur Kiran) / श्रीप्रकाश / अरविन्द राय / आकाश कुमार राय
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