जींद, 7 नवंबर (Udaipur Kiran) । गुरूवार को हांसी ब्रांच नहर पर व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं ने छठ मैया की पूजा की और फिर डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य दिया। नहाय-खाय करने के साथ ही बुधवार को छठ पूजा की शुरुआत हुई थी। जिले में इस समय पूर्वांचल के लगभग छह हजार लोग रह रहे हैं। खरना के दिन छठी मैया को प्रसाद का भोग लगाने के बाद 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत की शुरुआत हुई। गुड़ के मीठे चावल, सुहारी का प्रसाद बनाया गया। छठी मैया को भोग लगाने के बाद ही श्रद्धालुओं ने प्रसाद का भोग लगाया।
गुरुवार शाम को श्रद्धालु अपने परिवार के साथ पिंडारा, रानी तालाब, जयंती देवी मंदिर के निकट स्थित हांसी ब्रांच नहर पर पहुंचे और डूबते सूर्य को अघ्र्य देकर श्रद्धालुओं ने संतान सुख, परिवार के कल्याण के लिए सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त किया। आठ नवंबर को चौथे दिन उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा। इस दिन ही व्रती श्रद्धालु अघ्र्य के बाद पारण करेंगे। पूर्वांचल के विजय सिंह ने बताया कि छठ पूजा को महापर्व की भांति हर्षोल्लास से हर वर्ष मनाया जाता है। छठ पूजा को लेकर झारखंड, बिहार, बंगाल, मध्यप्रदेश में विशेष तौर पर तीन दिन की छुट्टी होती है।
पूर्वांचल प्रकोष्ठ के संयोजक संतोष कुमार ने बताया कि छठ ऐसा महापर्व है जिसकी जड़ें आज से नहीं बल्कि रामायण, महाभारत काल से ही जमी हुई हैं। श्रद्धालुओं को छठ महापर्व का पूरे साल इंतजार रहता है। छठ पूजा करके श्रद्धालु संतान सुख, परिवार के कल्याण के लिए सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसका धार्मिक, सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्व है। खरना के दिन छठी मैया उपासना की जाती है। यह व्रत शारीरिक, मानसिक शुद्धि के लिए किया जाता है। खरना के दिन बना प्रसाद को देवताओं को अर्पित करने के बाद ही ग्रहण किया जाता है। खरना का व्रत ईश्वर के प्रति समर्पण, भक्ति का प्रतीक है।
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(Udaipur Kiran) / विजेंद्र मराठा