कोरबा/जांजगीर-चांपा, 30 जुलाई (Udaipur Kiran) । कृषि विज्ञान केंद्र जांजगीर-चांपा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ राजीव दीक्षित ने बताया कि फसलों में विभिन्न प्रकार के रोग व्याधि का आक्रमण होता है जिनमें से बहुत से रोग बीज जनित होते हैं ,बीजों को उपचारित कर बुवाई करने से फसलों को प्रारंभिक अवस्था में कीट व्याधि लगने से बचाया जा सकता है।
उन्होंने किसान भाइयों को सलाह दी है कि धान बुवाई पूर्व बीज अवश्य उपचारित करें। सर्वप्रथम धान बीज को 17 प्रतिशत नमक घोल से उपचारित करे । केंद्र के वैज्ञानिक शशिकांत सूर्यवंशी ने बताया कि इस हेतु 17 प्रतिशत नमक का घोल तैयार करने हेतु 10 लीटर पानी ड्रम में लेकर 1 किलो 700 ग्राम नमक को घोले। तत्पश्चात धान के बीज को ड्रम मे डूबाये, इससे स्वस्थ बीज ड्रम में नीचे की ओर बैठ जाएगा एवं पोचे दाने ऊपर तैर जावेंगे, स्वस्थ बीज को निकाल कर स्वच्छ पानी में दो से तीन बार धोवे तत्पश्चात बीज की प्रति एकड़ अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें स पानी से घुले बीज को छायादार स्थान में फैला देंवे। अब स्वस्थ बीज के चयन पश्चात इन बीजों को रासायनिक/ जैविक दवाओं से उपचारित करने हेतु एफआईआर नियम का पालन करें अर्थात पहले फफूंदनाशक से तत् पश्चात कीटनाशक से एवं अंततः जैविक दवाओं से बीज को उपचारित करें। फफूंदनाशक से उपचारित करने हेतु विभिन्न फफूंदनाशी जैसे कार्बेंडाजिम मेनकोजेब, थायराम, कैप्टान दवाओं की 2 से 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से लेवे एवं धान बीज को उपचारित करें। कीटनाशक से उपचार हेतु कार्ट्रेप हाइड्रोक्लोराइड, इंडेक्साकार्ब क्लोरानटेनिलीपोल, क्लोरोप्यरिफोस आदि दवाओं की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग कर धान को उपचारित करें। जैव उर्वरकों से उपचार हेतु विभिन्न जैव उर्वरक जैसे पीएसबी कल्चर, एजोसपाइरिलम की अनुशंसित मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
रोपाई कर रहे कृषक थरहा/नर्सरी उपचार अवश्य करें स थरहा उपचार करने हेतु जिस खेत से थरहा निकाला जा रहा है उस खेत में एक छोटा गड्ढा बना ले एवं यह अंदाज लगाये कि इसमें कितना पानी होगा फिर 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से उसमें क्लोरोपीरीफोस, इंडक्शाकार्ब या कारटापहाइड्राक्लोराइड दवा पानी में मिला दें एवं 100 ग्राम यूरिया डाल दे। अब जो मजदूर थरहा निकाल रहे हैं उनसे कहें की वह थरहाजुड़ी को गड्ढे में डालते जाएं 15 से 20 मिनट थरहा उस गड्ढे में रहता है तो धान का थरहा दवा को अवशोषित कर लेता है इस तरह थरहा उपचारित हो जाता है इसका फायदा यह है कि प्राथमिक अवस्था में जो तना छेदक का संक्रमण होता है उसे हम रोक सकते हैं ।अतः किसान भाइयों से अनुरोध है की बीज उपचार एवं थरहा उपचार अवश्य करें।
सावधानियां –
धान को नमक पानी के घोल से उपचारित करने के पश्चात स्वच्छ पानी से अवश्य धोबे। दवाओ की अनुशंसित मात्रा का ही प्रयोग करें। बीज उपचार करने हेतु सीड ड्रम का इस्तेमाल करें या पालीथिन बिछाकर दवा को बीजो मे अच्छी तरह से मिलाये। उपचारित बीजों को छायादार स्थान में फैला कर रखें। जैव उर्वरकों से 2 घंटे बुवाई पूर्व बीजों को उपचारित करे। एफआईआर नियम का पालन अवश्य करें अर्थात पहले फफूंद नाशक तत्पश्चात कीटनाशक एवं अंततः जैव उर्वरकों से बीज को उपचारित करें।
(Udaipur Kiran) / हरीश तिवारी / केशव केदारनाथ शर्मा