Madhya Pradesh

जबलपुर : संभवतः पहली बार अदालत से जमानत न मिलने पर लगी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका

हाईको से जमानत न मिलने पर लगी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका

जबलपुर, 28 अगस्त (Udaipur Kiran) । मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में संभवतः यह अपनी तरह का पहला मामला है, जब जमानत न मिलने पर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई है। क्योंकि इसके पहले सम्भवतः शायद किसी भी कोर्ट में जमानत खारिज होने के बाद अपील की बजाय बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई गई हो और या उस पर सुनवाई हुई हो।

जबलपुर में हाईकोर्ट चीफ जस्टिस की युगल पीठ में एक महत्वपूर्ण कानूनी मामले पर सुनवाई हुई। कोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई है, जिसमें याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने जमानत याचिका खारिज होने के बाद अपने मुवक्किल को अवैध रूप से हिरासत में रखने का आरोप लगाया है।

आमतौर पर जमानत खारिज होने पर ऊंची अदालत में अपील दायर की जाती है, लेकिन इसमें याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अलग तरह से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई है। अधिवक्ता का तर्क है कि उनके मुवक्किल की जमानत याचिका को गलत तथ्यों और आधारों पर खारिज किया गया, इसके परिणामस्वरुप उनके मुवक्किल को अवैध रूप से जेल में रखा जा रहा है। इस मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से कोर्ट ने यह पूछा कि क्या उन्होंने पिछले फैसले के खिलाफ अपील दायर की है या यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया है? अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता का भरण पोषण करने वाले उसके पिता ही जेल में है। इसलिए वह सुप्रीमकोर्ट तक जाने की स्थिति में नहीं है और यह मामला ऐसे हजारों लोगों से जुड़ा हुआ है जो अदालतों में जमानत का इंतजार कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई है।

◆ यह है पूरा मामला-

सुविधा लैंड डेवलपर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड पर निवेश का झांसा देकर लोगों से ठगी करने के आरोप लगे थे। जिसके बाद साल 2021 में जिबराखन साहू सहित कुल 6 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इन सभी 6 लोगों को सुविधा लैंड डेवलपर कंपनी का डायरेक्टर बताया गया था, जबकि जिबराखन साहू उस कंपनी में केवल प्रमोटर थे। इसलिए ही जिबराखन साहू की बेटी ने यह याचिका दायर की है।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने अपनी याचिका में मौलिक अधिकारों के हनन की बात कही है और इस संबंध में सुप्रीमकोर्ट के पूर्व ऐसे आदेशो का हवाला दिया जिनमे अवैधानिक तरीके से बन्द पीड़ितों को राहत दी है। उन्होंने तर्क दिया कि इस मामले में उनके मुवक्किल के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जिसे तत्काल न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने यह तथ्य रखा कि इस मामले में जहां पुलिस खुद ही यह दस्तावेज पेश कर रही है कि, आरोपी बनाए गए जिरबराखन साहू प्रमोटर है, वहीं पुलिस की चार्ज शीट में उन्हें डायरेक्टर बताया जा रहा है। वहीं सेबी से मिले दस्तावेजों से भी इसी बात की पुष्टि होती है कि जिबराखन कंपनी के डायरेक्टर नहीं है। इस मामले में मजिस्ट्रेट को की गई शिकायत में भी जिबराखन लाल साहू भी शिकायतकर्ता है, लेकिन उसके बाद भी पुलिस ने उन्हें ही आरोपी बना दिया। अधिवक्ता ने यह आरोप लगाए कि जमानत याचिका की सुनवाई के समय भी यह सभी तथ्य कोर्ट के सामने रखे गए थे पर कोर्ट ने इन्हें नजरअंदाज करते हुए जमानत कर दी। इसके बाद आरोपी को जेल में रखे जाने को अवैध बताने को लेकर याचिका लगाई गई है।

एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और विनय सराफ की युगल पीठ ने सुनवाई के बाद, प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है और उनसे इस मामले में जवाब मांगा है। इस याचिका पर अगली सुनवाई 23 सितंबर को होगी।

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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक

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