
जयपुर, 21 मई (Udaipur Kiran) । सुप्रीम कोर्ट ने धोखाधडी और फर्जी दस्तावेज से जुडे मामले में 65 साल के दृष्टिबाधित आरोपित को जमानत नहीं देने को लेकर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने आरोपित को जमानत देते हुए कहा कि यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि मामला मजिस्ट्रेट कोर्ट की सुनवाई वाला केस है और पचास फीसदी दृष्टिबाधित बुजुर्ग को भी जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करनी पडी।
सुप्रीम कोर्ट ने आपसी लेनदेन के धोखाधडी के मामले में आरोपित को जमानत देते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह के मामलों में भी जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट तक आना पडा। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने यह आदेश राधेश्याम शर्मा की आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने कहा है कि आरोपित को एक सप्ताह में संबंधित निचली अदालत में पेश किया जाए और अदालत उसे उचित शर्तों पर रिहा करे।
याचिका में अधिवक्ता गिर्राज प्रसाद शर्मा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता बीते करीब सात माह से जेल में बंद है। वह 65 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति है और पचास फीसदी से अधिक दृष्टि बाधित है। वहीं मामले में पुलिस ने आरोप पत्र भी पेश कर दिया है। जिस पर मजिस्ट्रेट कोर्ट को सुनवाई करनी है। इसके बावजूद हाईकोर्ट ने उसे जमानत नहीं दी और जमानत याचिका को खारिज कर दिया। ऐसे में उसे जमानत पर रिहा किया जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने आरोपित को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि प्लॉट की खरीद-फरोख्त में धोखाधड़ी को लेकर याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया था। जिस पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था और वह गत 1 अक्टूबर से जेल में हैं।
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(Udaipur Kiran)
