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राजरंगम् महोत्सव : यादों को हमेशा संजोए रखना सही नहीं, आगे बढ़ने के लिए भूलना भी है जरूरी

राजरंगम् महोत्सव : यादों को हमेशा संजोए रखना सही नहीं, आगे बढ़ने के लिए भूलना भी है जरूरी
राजरंगम् महोत्सव : यादों को हमेशा संजोए रखना सही नहीं, आगे बढ़ने के लिए भूलना भी है जरूरी

जयपुर, 5 जनवरी (Udaipur Kiran) । रंगमंच के रंगों से सराबोर करने वाला 7वां राजरंगम् महोत्सव अपने परवान पर है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार और एक्टर्स थिएटर एट राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित महोत्सव का रविवार को चौथा दिन रहा। रंगायन सभागार में शाम को सुनीता तिवारी नागपाल (एनएसडी) के निर्देशन में नाटक ‘पीले स्कूटर वाला आदमी’ का मंचन किया गया। वहीं ‘भारत की कला, संस्कृति और आपदा प्रबंधन’ विषय पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी पर नाट्य निर्देशकों ने चर्चा की। सोमवार को महोत्सव के आखिरी दिन धीरज भटनागर के निर्देशन में शाम 6:30 बजे नाटक ‘चित्रांगदा’ का मंचन किया जाएगा।

चर्चा में शामिल हुए वरिष्ठ निर्देशक

राष्ट्रीय संगोष्ठी में राजरंगम् निर्देशक डॉ. चन्द्रदीप हाडा, वरिष्ठ नाट्य निर्देशक नरेन्द्र अरोड़ा, धीरज भटनागर, विशाल विजय, योगेन्द्र सिंह और संकेत जैन ने अपने विचार रखे। कोरोना जैसी आपदा के बाद भारत की कला और संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा और ऐसी आपदा का प्रबंधन किस तरह किया जाए जिससे रंगमंच और अन्य कलाएं अक्षुण्ण बनी रहे शोध का यह विषय चर्चा कर केन्द्र रहा। डॉ. चन्द्रदीप हाडा ने कहा कि किसी भी तरह की आपदा के समय कलाकार व कला-संस्कृति को अनेक समस्याओं से गुजरना पड़ता है, आपदा के प्रबंधन के लिए संयुक्त रूप से उपाय और सुझाव निकलकर सामने आए यही चर्चा का मुख्य उद्देश्य रहा। संघोष्ठी के जरिये कलाकारों के मन में आपदा प्रबंधन के लिए विचार उत्पन्न करने का प्रयास किया गया जिससे पॉलिसी मेकिंग में वे भी अपना योगदान निभा सके। नरेन्द्र अरोड़ा ने कहा कि आपदा में कलाकारों को रोजगार के अवसर कैसे उपलब्ध हो इस पर विचार किया जाना चाहिए। इसमें हमें लाइव प्रसारण जैसी तकनीक के उपयोग पर जोर देना चाहिए। धीरज भटनागर ने युवा रंगकर्मियों से जीवन में अनुशासन अपनाने पर जोर दिया। विशाल विजय ने रंगकर्मियों से आलोचनाएं स्वीकार करने का आह्वान किया जिससे सीखने के अवसर बढ़ें। वहीं युवा निर्देशक योगेन्द्र सिंह और संकेत जैन ने रंगकर्म में नए प्रयोग करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

दिल में हलचल पैदा करती मानव कौल की कहानी

अपनी कहानियों से पाठकों के दिलों में हलचल पैदा करने वाले लेखक और अभिनेता मानव कौल की कहानी पर आधारित नाटक ‘पीले स्कूटर वाला आदमी’ की प्रस्तुति दर्शकों को गहरा संदेश दे गयी। सुनीता तिवारी नागापाल के निर्देशन में कलाकारों ने अपने विचारों की उधेड़बुन में लगे मुंबई निवासी लेखक ‘लाल’ की कहानी को जीवंत किया। ‘लाल’ जिसकी एकाकी जिंदगी मुंबई की भागदौड़ भरी जिंदगी में एक कमरे में सिमट कर रह गयी है। नाटक में लाल की कहानी के साथ कई कहानियां समानांतर चलती है, उसके परिवारजन और आप—पास के लोग ही इन कहानियों के पात्र होते हैं। सपने के साथ नाटक की शुरुआत होती है, लाल कुछ लिखने में व्यस्त है। तभी उसकी प्रेमिका आती है वह उसके साथ सुकून भरे कुछ लम्हें गुजार रहा होता है आंख खुलते ही लाल का सामना होता है अपने ही अक्स पीतांबर से। दोनों की चर्चा के साथ नाटक आगे बढ़ता है। एक-एक कर किरदारों से लाल का सामना होता है। कभी उसके पिताजी, कभी प्रेमिका तो कभी मोहल्ले के वृद्ध से उसका सामना होता है और लाल अपने कुछ सवाल उनके सामने रखता है। बचपन में लाल की तबीयत खराब होने पर उसकी पसंदीदा चीज को पीला करने की सलाह दी जाती है तो पिताजी के स्कूटर को पीले रंग में रंग दिया जाता है, पीले स्कूटर को चलाने वाले आदमी लाल के पिता रहते है। यह बात लाल के मन में खटकती रहती है तो पिताजी लाल को उन बातों को भूल जाने को कहते है। इसी तरह पिताजी अपनी पत्नी सावित्री के बारे में कहते थे कि सावित्री बहुत बुरी थी तो लाल इस सवाल का जवाब भी लगातार पूछता रहता है कि ऐसा क्यों रहा। नाटक का अंत बड़ा ही मार्मिक रहा। लाल के पिताजी हमेशा उसे पत्र लिखा करते थे। लाल उन्हें पढ़ता नहीं था, लाल के पिताजी अक्सर उसके समक्ष आकर वह पत्र पढ़ने की बात कहते थे। अपनी इन यादों से परेशान लाल पिताजी से कहता है कि आखिर आप कब तक यूं ही आते रहेंगे। इस पर पिताजी अपना आखिरी पत्र लाल से पढ़ने की बात कह कर हमेशा के लिए चले जाने का वादा करते है। लाल जो इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहता कि पिताजी अब दुनिया में नहीं रहे उस पत्र को पढ़ने से इंकार कर देता है क्योंकि उसके मन में कई बातें दबी रह गयी जो वह अपने पिता से कहना चाहता था। आखिरी में यह नाटक सीख देता है कि जीवन में यादों को हमेशा संजोए रखना सही नहीं रहता आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि चीजों के भुला दिया जाए।

सऊइ नियाजी ने लाल, पुलकित शर्मा ने पितांबर, राजाराम बिश्नोई ने पिताजी, हेमंत थापलिया ने पड़ोसी और प्रीति दुबे ने नील का किरदार निभाया। कृष्ण पाल सिंह ने म्यूलिक, सुनीता तिवारी ने निर्देशन के साथ लाइट और हेमंत गौतम ने बैक स्टेज की जिम्मेदारी संभाली।

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(Udaipur Kiran)

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