– पति के विरुद्ध दाखिल दहेज़ उत्पीड़न का आरोप पत्र रद्द
प्रयागराज, 01 अगस्त (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि वैवाहिक विवादों में यदि प्राथमिकी और चार्जशीट से संज्ञेय अपराध का साक्ष्य उपलब्ध हो, ऐसी दशा में भी अदालत को न्याय के लिए शिकायतकर्ता के उद्देश्य पर भी विचार करना चाहिए और मामले पर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि प्राथमिकी में सभी आरोप सामान्य प्रकृति के हैं और सभी अभियुक्तों पर एक समान रूप से लगाए गए हैं। जांच अधिकारी भी अभियुक्तों की भूमिका अलग नहीं कर सके, इसलिए याची के मामले को अलग से नहीं देखा जा सकता है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने अलीगढ़ के पंकज की याचिका स्वीकार करते हुए उसके विरुद्ध दहेज उत्पीड़न और मारपीट के मामले में दाखिल आरोप पत्र और अदालत के संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि याची की पत्नी ने पति और उसके नजदीकी रिश्तेदारों पर सामान और एक जैसे आरोप लगाए हैं। पुलिस ने जांच में इसी मामले में देवर और ननद के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं किया है। शिकायतकर्ता ने अपने बयान में भी सभी पर एक जैसे आरोप लगाए हैं। सिर्फ बयान के अंतिम हिस्से में पति पर विशेष आरोप लगाया है कि उसने उसके साथ मारपीट की।
मामले के अनुसार याची की शादी 22 अप्रैल 2016 को अलीगढ़ में ही हुई थी। 25 जून 2018 को उसकी पत्नी ने पति और सास ससुर सहित ननद और देवर पर 20 लाख रुपए दहेज के लिए प्रताड़ित करने का मुकदमा दर्ज कराया। इस मामले में जांच के बाद पुलिस ने पति और सास ससुर के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया। जिस पर कोर्ट ने संज्ञान लिया और शुरुआत में मामला मध्यस्थता के लिए भेज दिया गया। मगर दोनों पक्ष समझौते के लिए राजी नहीं हुए। इसके बाद याची ने चार्ज शीट और न्यायालय द्वारा लिए गए संज्ञान आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए आरोप पत्र को रद्द कर दिया।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे / पवन कुमार श्रीवास्तव