
प्रयागराज, 26 मार्च (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि परिवीक्षा अवधि के दौरान कर्मचारी की असंतोषजनक सेवा पर जांच के बिना भी उसकी नियुक्ति रद्द की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा कि रोजगार के नियमों के तहत या संविदात्मक अधिकार के प्रयोग में किसी प्रोबेशनर की सेवाओं की समाप्ति न तो बर्खास्तगी है और न ही निष्कासन। आदेश कर्मचारी के चरित्र या ईमानदारी के विरुद्ध है तो यह दंड के रूप में एक आदेश होगा भले ही कर्मचारी केवल प्रोबेशनर या अस्थायी हो।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने संजय कुमार सेंगर और केएल जैन इंटर कॉलेज की याचिकाओं पर दिया है। याची का वर्ष 2006 में के एल इंटर कॉलेज महामाया नगर में सहायक अध्यापक व्यायाम के पद पर चयन हुआ। वह प्रोबेशन पर था। उसकी परिवीक्षा अवधि एक वर्ष के लिए बढ़ाकर वर्ष 2008 तक कर दी गई। वर्ष 2007 में जब याची को वेतन नहीं दिया गया तो उसने हाई कोर्ट में याचिका की जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद कॉलेज ने याची को आरोप पत्र जारी कर आरोप लगाया कि उसने संस्था के लिए अपेक्षा के अनुसार कार्य नहीं किया और बार-बार अनुरोध के बावजूद अपने कार्यों को नहीं सुधारा। याची ने अपना जवाब प्रस्तुत किया, जिसे असंतोषजनक मानते हुए खारिज कर दिया गया।
इसके बाद कॉलेज के प्रबंधक ने याची के खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया। जांच समिति ने याची के खिलाफ लगाए आरोपों को सही पाया और उसकी सेवा समाप्त करने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद जांच रिपोर्ट की एक कॉपी के साथ याची को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और याची की सेवा समाप्त कर दी गई। सेवा समाप्ति आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। याची जिस पद पर कार्यरत था, उसे भरने के लिए विज्ञापन को भी उसने चुनौती दी।
इसके बाद उक्त पद पर वलीउज्जमां खान की नियुक्ति की गई, जिसने वेतन न मिलने पर प्रबंध समिति के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। दोनों रिट याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की गई। कोर्ट ने कहा कि परिवीक्षाधीन व्यक्ति की सेवाओं का विस्तार संतोषजनक सेवा के आधार पर होता है। यदि उसकी सेवाएं असंतोषजनक पाई जाती हैं, तो जांच किए बिना भी नियुक्ति रद्द की जा सकती है। साथ ही वलीउज्जमां खान को सहायक अध्यापक व्यायाम के रूप में नियुक्त करने पर कोई रोक नहीं है।
—————
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
