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पत्नी के नाम फर्जी याचिका कर तलाक का आधार तैयार करने की जांच के निर्देश

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

प्रयागराज, 13 मई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला के नाम से उसकी जानकारी या सहमति के बिना फर्जी याचिका दाखिल करने को गम्भीरता से लिया है और प्रयागराज के पुलिस आयुक्त को इसकी जांच करने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने याची महिला की शिकायत पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय के समक्ष एक कपटपूर्ण कृत्य किया गया है ताकि किसी स्वार्थ पूर्ण उद्देश्य की प्राप्ति की जा सके। इस प्रकार की धोखाधड़ी बिना किसी ऐसे व्यक्ति की संलिप्तता के नहीं हो सकती जो विधिक प्रक्रियाओं से भलीभांति परिचित हो। कोर्ट ने कहा कि यह मामला निष्पक्ष और विस्तृत जांच की मांग करता है। क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय के समक्ष धोखाधड़ी का प्रयास किया गया है। यदि षड्यंत्रकर्ता अपने इरादों में सफल हो जाते, तो यह न केवल न्याय व्यवस्था का उपहास होता, बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली पर कलंक होता और विधि के शासन में जनता के विश्वास को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता।

याचिका पिछले वर्ष दाखिल की गई थी, जिसमें एक महिला और एक पुरुष को पति-पत्नी बताते हुए उनके लिए सुरक्षा की मांग की गई थी। अप्रैल 2024 में वह महिला अपने भाई के साथ कोर्ट में उपस्थित हुई और स्पष्ट किया कि उसने न तो याचिका पर हस्ताक्षर किए थे और न ही शपथपत्र पर। उसने यह भी बताया कि उसका आधार कार्ड दुरुपयोग किया गया और वह याचिका में वर्णित पुरुष के साथ विवाहित नहीं है। महिला का कहना है कि वह पहले से किसी अन्य पुरुष से विवाहित है। उसके दो बच्चे हैं और वर्तमान में वैवाहिक विवाद के कारण वह अपने पिता के घर रह रही है। उसने यह भी आशंका जताई कि यह याचिका उसके पति ने एक वकील के साथ मिलकर दाखिल कराई ताकि तलाक का आधार तैयार किया जा सके।

वहीं दूसरे याची ने भी इस याचिका के संबंध में कोई जानकारी होने से इनकार किया। इस याचिका में अधिवक्ता लल्लन चौबे का नाम था, जिन्हें कोर्ट ने नोटिस जारी किया था। उन्होंने कहा कि याचिका उन्होंने दाखिल नहीं की और उनका नाम व हस्ताक्षर जालसाजी से प्रयोग किए गए। शपथपत्र की प्रक्रिया में संलिप्त ओथ कमिश्नर को भी लापरवाही का दोषी पाया गया। इस बीच महिला के पति ने प्रति शपथपत्र दाखिल कर आरोप लगाया कि उसकी पत्नी दूसरे याची के साथ अवैध संबंध में है और ससुराल लौटने से इनकार कर चुकी है।

इन परस्पर विरोधी और गम्भीर आरोपों के मद्देनज़र कोर्ट ने प्रयागराज के पुलिस आयुक्त को प्रारम्भिक जांच करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि कोई संज्ञेय अपराध बनता है तो तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए यह भी निर्देश दिया कि जांच निष्पक्ष, स्वतंत्र और बिना किसी प्रभाव के की जाए तथा फोरेंसिक और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर सच्चाई सामने लाई जाए। कोर्ट ने पुलिस आयुक्त को स्वयं इस जांच की निगरानी करने और प्रत्येक तिमाही में इसकी प्रगति रिपोर्ट सीजेएम को सौंपने को कहा है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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