
प्रयागराज, 03 मार्च (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को रद्द कर मामले को नए सिरे से तय करने के लिए वापस भेज दिया। न्यायालय ने कहा कि जब तक मुकदमा लम्बित रहेगा तब तक पत्नी को पांच हजार और बेटी को चार रुपया प्रति माह भरण पोषण दिया जाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की पीठ ने ललिता देवी व एक अन्य की पुनरीक्षण याचिका पर दिया। संत कबीर नगर निवासी याची ने परिवार न्यायालय में वाद दायर कर बेटी व स्वयं को गुजारा भत्ता देने के लिए आवेदन किया था, जिसे 6 दिसम्बर 2022 को खारिज कर दिया गया। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का गलत मूल्यांकन किया। नाबालिग पुत्री के सम्बंध में भरण-पोषण आवेदन खारिज करते समय एक शब्द भी नहीं कहा गया। जबकि नाबालिग बेटी अपने पिता से भरण-पोषण पाने की हकदार है। पिता इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
वहीं, अन्य महिला के साथ रहने वाले पति के साथ एक पत्नी रहने का जोखिम नहीं उठा सकती। अगर पति की इन हरकतों से पत्नी अपने माता-पिता के घर रहती है तो यह नहीं कह सकते कि वह बिना पर्याप्त कारण के पति से अलग रह रही है। पत्नी व बेटी भरण-पोषण पाने की हकदार है। वहीं, अपर शासकीय अधिवक्ता ने याचिका का विरोध किया।
न्यायालय ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि नाबालिग बेटी के भरण-पोषण देने के प्रश्न पर ट्रायल कोर्ट ने बिल्कुल भी विचार नहीं किया। ऐसे में ट्रायल कोर्ट के आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता है। न्यायालय ने आक्षेपित आदेश को रद्द करते हुए नए सिरे से छह महीने के अंदर कानून के अनुसार फैसला लेने का परिवार न्यायालय को निर्देश दिया। तब तक बेटी व पत्नी को भत्ता आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तिथि से मामले के लम्बित रहने तक भत्ता दिया जाए।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
