
मुंबई,26 मई ( हि.स.) । अक्सर देखा जाता है कि समाज सेवी अथवा पत्रकारिता से जुड़े हुए लोग विभिन्न जेलों में सजा काट रहे दोषी अथवा विचाराधीन कैदियों को भाव भंगिमा उनको मनोदशा को उतारने के लिए फोटोग्राफी करने कैदियों के फोटो लेने जाते हैं।कई उन पर कविता लेख और कहानी भी रखकर सांझा करते हैं।पर कभी सोचा है कि यदि एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे वे क्या सोचते है बाहर की दुनिया के बारे में यदि उनके हाथों में कैमरा हो तो वे किस प्रकार से फोटो निकाल सकते हैं।यही दृष्टिकोण से एक खुले विश्वविद्यालय ने एक कदम उठा कर एक अभिनव प्रयोग उनके लिए किया है जो समाज द्वारा अस्वीकृत, अपराध के कुचक्र में फंसे तथा अपने गलत निर्णयों के कारण जीवन में पिछड़े कई कैदी ठाणे सेंट्रल जेल में अपनी सजा काट रहे हैं। इस प्रकार, यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी और ठाणे सेंट्रल जेल ने इन कैदियों को अपने जीवन को नए सिरे से शुरू करने और नई दिशा खोजने का अवसर दिया है।
ठाणे सेंट्रल जेल में डिजिटल फोटोग्राफी और वीडियो पर एक विशेष प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। इस अभिनव पहल के माध्यम से कैदियों को जेल के अंदर ही फोटोग्राफी का एक ईमानदार व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस प्रशिक्षण में भाग लेने वाले कैदियों ने बड़े उत्साह के साथ भाग भी लिया है।
दरअसल सकारात्मक और रचनात्मक सोच रखने वाले ठाणे के वरिष्ठ समाचारपत्र फोटोग्राफर प्रफुल्ल गंगुर्डे की इस पहल का विशेष प्रयास की सराहना की जाना चाहिए।जाना चाहिए। उन्होंने अपनी सामाजिक जागरूकता को बनाए रखने हेतू उन्होंने कैदियों को प्रशिक्षित करने का निश्चय किया है। उन्होंने अपने अनुभव का सार ,निष्कर्ष या खजाना इन कैदियों को समर्पित कर दिया है यही नहीं बल्कि उन्हें फोटोग्राफी के बुनियादी सिद्धांत, कैमरा हैंडलिंग, फ्रेमिंग, प्रकाश का उपयोग, कहानी कहने और फोटो पत्रकारिता जैसी महत्वपूर्ण बातें सिखाई हैं।
फ़िलहाल तो ये प्रशिक्षण कक्षाएं सप्ताह में दो बार आयोजित की जा रही हैं। इन कैदियों की व्यावहारिक परीक्षा अभी चल रही है और अंतिम लिखित परीक्षा जून में होगी। इसके बाद उत्तीर्ण होने वाले कैदियों को विश्वविद्यालय की ओर से आधिकारिक प्रमाण पत्र दिया जाएगा।
इस पूरी पहल में जिला कौशल विकास, रोजगार एवं उद्यमिता मार्गदर्शन केंद्र, महाराष्ट्र उद्यमिता विकास केंद्र, यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र मुक्त विश्वविद्यालय और ठाणे जेल संयुक्त रूप से भाग ले रहे हैं।
यह फोटोग्राफी प्रशिक्षण सिर्फ कैमरे से परिचय नहीं है, बल्कि एक नए अवसर की शुरुआत है। जब ये कैदी अपनी शिक्षा पूरी कर लेंगे और जेल से बाहर आएंगे, तो उनके पास कौशल होगा – जिसके आधार पर वे नौकरी पा सकेंगे, अपना व्यवसाय शुरू कर सकेंगे, या कम से कम एक नया रास्ता खोज सकेंगे।
प्रेस फोटोग्राफर प्रफुल्ल ने बताया कि हमें समाज में रचनात्मक और सकारात्मक विचार रखते हुए ही समाज को कुछ देना होगा। इसी भावना से वे कैदियों को प्रशिक्षण देना चाहते थे और शायद यह अवसर यशवंतराव चव्हाण मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान किया गया है। पहले तो ये लोग अपराधी जैसे लगे, लेकिन धीरे-धीरे उनमें से एक आदमी की अभिव्यक्ति मेरे सामने आ गई। अब वे अपने उद्देश्य के साथ नए कार्य को प्रयोग में ला रहे हैं।
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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र शर्मा
