
वाराणसी, 03 जून (Udaipur Kiran) । काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के शोधकर्ताओं ने पित्ताशय (गॉलब्लैडर) कैंसर के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। उन्होंने ऐसे नए जेनेटिक बायोमार्कर की पहचान की है, जो इस घातक बीमारी की शुरुआती पहचान और लक्षित उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।
यह शोध डॉ. रूही दीक्षित (जनरल सर्जरी विभाग), डॉ. मनोज पांडेय और डॉ. विजय कुमार शुक्ला की संयुक्त टीम द्वारा किया गया है। टीम ने Clariom D माइक्रोएरे तकनीक का उपयोग करते हुए गॉलब्लैडर कैंसर, गॉलब्लैडर स्टोन (पथरी), और स्वस्थ ऊतकों के जीन की तुलना की।
10 प्रमुख जीन चिन्हित
शोध टीम के अनुसार अध्ययन में BRCA2 और RAD51B जैसे 10 मुख्य जीन की पहचान की गई है, जो संभवतः कैंसर की उत्पत्ति में अहम भूमिका निभाते हैं। डॉ. रूही दीक्षित के अनुसार ये जीन आमतौर पर शरीर में खराब डीएनए की मरम्मत करते हैं, लेकिन जब इनकी कार्यप्रणाली गड़बड़ होती है, तो कैंसर विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है।
इसके अलावा शोध में ऐसे जीन भी पाए गए, जो तीनों समूहों — कैंसर, पथरी और सामान्य ऊतक — में अलग-अलग तरीके से सक्रिय थे। इससे संकेत मिलता है कि ये जीन गॉलब्लैडर कैंसर के प्रारंभिक बायोमार्कर के रूप में कार्य कर सकते हैं।
गंगा क्षेत्र में उच्च जोखिम
गॉलब्लैडर एक छोटा अंग है जो लीवर के नीचे स्थित होता है और पित्त संग्रह करता है। यह कैंसर भारत में विशेष रूप से गंगा नदी बेसिन में रहने वाले लोगों में अधिक पाया जाता है। बीएचयू के सर सुंदरलाल चिकित्सालय में आने वाले कुल कैंसर मरीजों में से करीब 5 फीसद पित्ताशय कैंसर के होते हैं। यह रोग खासकर 45 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में पाया जाता है, और पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इसकी संभावना पाँच गुना अधिक होती है।
अक्सर यह कैंसर शुरुआती अवस्था में बिना किसी लक्षण के होता है, जिससे इसकी पहचान देर से होती है और तब तक इलाज मुश्किल हो जाता है। परिणामस्वरूप, ऐसे अधिकतर मरीज 6 से 12 महीने के भीतर जीवन खो बैठते हैं। यह भारत का पहला अध्ययन है जिसमें एक साथ कैंसरग्रस्त, पथरीग्रस्त और सामान्य ऊतकों की तुलना की गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार, पहचाने गए जीन भविष्य में डायग्नोसिस और टार्गेटेड थेरेपी के लिए उपयोगी बायोमार्कर बन सकते हैं।
डॉ. रूही दीक्षित ने बताया कि “हमारी यह खोज गॉलब्लैडर कैंसर की समय पर पहचान में मदद कर सकती है। यदि इन बायोमार्कर की और पुष्टि हो जाती है, तो इससे इलाज की दिशा पूरी तरह बदल सकती है।”
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
