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स्वदेशी ‘जोरावर’ टैंक ने उच्च ऊंचाई पर गोले दागकर अपनी क्षमता साबित की 

स्वदेशी 'जोरावर' टैंक (फ़ाइल फोटो)

– वायु सेना ने त्वरित तैनाती के लिए टैंक की एयर लिफ्टिंग क्षमता का प्रदर्शन किया

नई दिल्ली, 12 दिसंबर (Udaipur Kiran) । भारतीय लाइट टैंक ‘जोरावर’ ने 4200 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर विभिन्न रेंजों में कई राउंड फायर करके एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उच्च ऊंचाई वाले स्थान पर यह परीक्षण पहले चरण में रेगिस्तानी वातावरण में लगातार सटीक परिणामों के बाद किया गया है।इसी के साथ वायु सेना ने दूरदराज के स्थानों में त्वरित तैनाती के लिए टैंक की एयर लिफ्टिंग क्षमता का प्रदर्शन भी किया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लाइट टैंक के सफल उच्च ऊंचाई परीक्षणों पर डीआरडीओ, भारतीय सेना, भारतीय वायुसेना और लार्सन एंड टुब्रो को बधाई दी​ है।

चीन की सीमा पर पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त तेज़ बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों की तलाश पूरी हो गई है। चीन के साथ सैन्य टकराव के बीच पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे स्थानों पर उच्च ऊंचाई वाले युद्ध के लिए डिजाइन किए गए स्वदेशी जोरावर लाइट टैंक का पहला परीक्षण सितंबर में रेगिस्तानी इलाकों में किया गया था। फील्ड ट्रायल के दौरान रेगिस्तानी इलाकों में सफल परिणाम मिलने के बाद अब 4200 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर विभिन्न रेंज में गोले दागने के परीक्षण किये गए हैं। इस टैंक को 25 टन वर्ग के बख्तरबंद लड़ाकू वाहन के रूप में डिजाइन किया जा रहा है, ताकि उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सशस्त्र बलों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

इस लाइट टैंक को भारतीय सेना की जरूरतों के अनुसार रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की चेन्नई स्थित प्रयोगशाला, कॉम्बैट व्हीकल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट ने डिजाइन और विकसित किया है। इसका निर्माण लार्सन एंड टुब्रो प्रिसिजन इंजीनियरिंग एंड सिस्टम्स ने किया है। इसकी डिजाइन से लेकर कार्यान्वयन और उच्च ऊंचाई पर प्रदर्शन तक का काम तीन वर्षों में पूरा किया गया है। भारतीय वायुसेना ने टैंक को 4200 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर पहुंचाकर अपनी एयरलिफ्ट क्षमता का भी प्रदर्शन किया है। इससे परिचालन स्थितियों में टैंक को पहाड़ी इलाकों त्वरित रूप से तैनात करने में सहायता मिलेगी, जो सड़क या रेल के माध्यम से संभव नहीं थी।

पूर्वी लद्दाख में टकराव के बाद भारतीय सेना ने चीन को चौतरफा घेरने के लिए एलएसी पर 40 से 50 टन वजन वाले रूसी मूल के भीष्म टी-90, टी-72 अजय और मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन भी तैनात कर रखे हैं। लद्दाख के ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए सेना के जवानों को कई दर्रों से गुजरना पड़ता है। ऐसी स्थिति में ऑपरेशन के दौरान आवश्यकता पड़ने पर टी-72 और अन्य भारी टैंक उस स्थान तक नहीं पहुंच सकते हैं। इसलिए उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए हल्के वजन वाले टैंकों की जरूरत महसूस की गई, ताकि इन्हें 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर ले जाया जा सके।

इसके बाद भारत ने खुद ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ के तहत 25 टन से कम वजन वाले 354 टैंकों का निर्माण करने का फैसला लिया। सैद्धांतिक रूप से डीआरडीओ को 2021 के अंत तक 354 टैंकों की आवश्यकता में से 59 का निर्माण करने के लिए हरी झंडी दे दी गई थी।इसके बाद डीआरडीओ ने हल्के टैंकों को विकसित किया और एलएंडटी को इसके निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई। एलएंडटी ने डीआरडीओ के सहयोग से ढाई साल के भीतर स्वदेशी लाइट टैंक ज़ोरावर का पहला प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है, जिसके परीक्षण किये जा रहे हैं। उपयोगकर्ता परीक्षणों से पहले ‘जोरावर’ को कुछ और परीक्षणों से गुजरना होगा।

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(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम

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