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भारत का सबसे बड़ा आदर्श है एकात्मता: आरिफ मोहम्मद खान

दत्तोपंत ठेंगड़ी राष्ट्रीय स्मृति व्याख्यानमाला में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान
दत्तोपंत ठेंगड़ी राष्ट्रीय स्मृति व्याख्यानमाला में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार
दत्तोपंत ठेंगड़ी राष्ट्रीय स्मृति व्याख्यानमाला

– दत्तोपंत ठेंगड़ी राष्ट्रीय स्मृति व्याख्यानमाला 2024 संपन्न

भोपाल, 10 नवंबर (Udaipur Kiran) । केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि दुनिया के बहुत से विकसित देश, जहां साक्षरता प्रतिशत ज्यादा रही, वहां महिलाओं को वोट का अधिकार भारत के आजाद होने के बाद मिला। वहां यह इसलिए था, क्योंकि वे मानते हैं कि महिला और काले लोग में आत्मा नहीं होती। अतः वे मतदान के अधिकारी नहीं हैं। भारत का सबसे बड़ा आदर्श है एकात्मता, जो इंसान को इस लायक बनाती है, जो अपने साथ समाज और परम सत्य के साथ शांति स्थापित कर सके।

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान रविवार देर शाम भोपाल के रविंद्र भवन में दत्तोपंत ठेंगड़ी की 104वीं जयंती के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला– 2024 में ‘भारत की विविधता में सांस्कृतिक एकात्मता’ विषय पर बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्षों पहले जो ज्ञान दिया, वह अनमोल है। उन्होंने विविधता में एकता के सूत्र दिए हैं।

उन्होंने कहा कि बड़े पेड़ की जड़ें गहरी होती हैं। ऐसे ही कुछ लोग होते हैं, जिनके अंदर समर्पण भाव गहरा होता है। दत्तोपंत ठेंगड़ी भी ऐसा ही एक व्यक्तित्व थे। उन्होंने बौद्धकथा का उल्लेख करते हुए कहा कि अंतिम समय में गौतम बुद्ध के शिष्य ने उनसे पूछा कि पथ भ्रष्ट न हो, इसके लिए उपाय बताइए। तब उन्होंने कहा कि ‘अप्पा दीपो भव’, मैने जो बात बताई है उसे भी स्वीकार मत करो, जो बात मेरे लिए सत्य है वह दूसरे के लिए भी सत्य हो, यह जरूरी नहीं है। दरअसल यह अथर्वेद की ऋचा का सूत्र है। इसे हम अद्वैतवाद या एकात्मता कह सकते हैं।

राज्यपाल खान ने कहा कि आद्य शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद जो दर्शन दिए, उसकी झलक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के भाषणों परिलक्षित होती है और उसी को ठेंगड़ी जी ने विस्तार प्रदान किया, लेकिन किसी ने नहीं कहा कि ये मेरा विचार है। हमारे ऋषियों ने कभी नहीं कहा कि ये सिद्धांत हमारे दिमाग की उपज हैं। उन्होंने कहा कि ये नैसर्गिक है, प्राकृतिक है, दैविक हैं। हमने केवल ढूंढा है।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति के लिए समाज चाहिए, समाज को व्यवस्थित रखने के लिए संगठन चाहिए, संगठन के लिए आधार चाहिए और यह आधार सभ्यता और संस्कृति की बढ़ाता है। हमारे यहां आस्था की अभिव्यक्ति में विविधता है। अतः जब आस्था एक है तो हम सबको एक होना चाहिए। आज जीवन का उद्देश्य सुख समझा जाता है, उसमें भी भौतिक सुख। लेकिन विवेकानंद से पूछा गया कि जीवन का उद्देश्य क्या है? उन्होंने कहा कि ज्ञान। फिर उनसे पूछा गया कि ज्ञान का उद्देश्य क्या है? उन्होंने कहा कि ज्ञान का उद्देश्य है कि व्यक्ति में वह क्षमता विकसित कर सके कि सामने नजर आने वाली विविधता के पीछे एकात्मता को देख सके।

एकात्मता का आदर्श हैं चार मठ

उन्होंने कहा कि आद्य शंकराचार्य ने जिन चार मठों को स्थापित किया है, वे इस विचार को स्थापित करते हैं कि आत्मा के रूप में परमात्मा हर देह में निवास करती है। एकात्मता का इससे बड़ा आदर्शों और उदाहरण कोई नहीं हो सकता। हमारी ज्ञान की संस्कृति है। पश्चिम देशों में समानता आज तक नहीं आई लेकिन भारतीय संस्कृति ने समानता का अधिकार दिया, हम उनसे पहले से बेहतर थे। विश्व के कई देशों में भेदभाव है लेकिन भारतीय संस्कृति में ऐसा नहीं है। हमारी गौरवशाली परंपरा होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते क्योंकि उसकी हमें पूरी तरह से जानकारी ही नहीं है, यही हमारी मूल समस्या है।

व्याख्यानमाला में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि दत्तोपंत बहुआयामी व्यक्तित्व थे, उन्होंने विविध संगठनों की स्थापना के साथ समाज को एक नई दिशा भी अपने विचारों से दी। उन्होंने कहा कि भारतीय सनातन विचार में ही विकास के सारे रास्ते है जिन पर समाज को आगे जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि साम्यवाद और पूंजीवाद की समाप्ति के बाद विकल्पों को खोजना भी हमारी ही जिम्मेदारी है। विकास का रास्ता प्रकृति को नष्ट करके नहीं प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति प्रकृति के साथ रहने और उसे पूजने वाली है, इसके संरक्षण के माध्यम से ही विकास को पा सकते है। यह विचार भी ठेगडी का ही है। भारतीय संस्कृति में ही सब खूबियां है जिसे हम अद्वैत कहते हैं। परमात्मा से जुड़ाव का जो विचार है वहीं हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है।

डॉ कुमार ने कहा कि स्वदेशी के विचार से ही विकसित भारत का स्वप्न पूरा हो सकता है। प्राचीन समय में हम ग्लोबल ट्रेड में सर्वोपरि थी लेकिन गुलामी के कारण हमारी दुर्दशा हुई. इसलिए विकसित भारत के लिए हमें पुनः उस स्वदेशी के भाव को अपनाना होगा जिसका उल्लेख दत्तोपंत जी की किताबों में मिलता है। विकास को मापने के पैमाने जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के स्थान पर हमने निचले तबके के 10 प्रतिशत लोगों के जीवन को बदलना होगा। उन्हें रोटी, कपड़ा, मकान, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध कराने की जरूरत है। तब आर्थिक स्थिति को बेहतर ढंग से नापना संभव है। इन सबके लिए भारतीय दृष्टि पर आधारित शोध किए जाने की भी आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर विकसित होने की अपेक्षा स्थानीयता के आधार पर परिवर्तन लाकर सही ढंग से विकास आज की प्रमुख आवश्यकता है। मूलभूत अधिकारों में बेहतर पर्यावरण को भी जोड़ना आवश्यक है। हमें प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देना चाहिए। आयात से अधिक निर्यात आवश्यक है, यही सही आत्मनिर्भरता है।

सरकार रेगुलेटर न बनकर सपोर्टर बने

डॉ राजीव कुमार ने कहा कि उद्योग को बिजली, आंतरिक ढांचा और ट्रांसपोर्ट में समानता का व्यवहार करना होगा अन्यथा हम लक्ष्य प्राप्ति में पीछे रह जाएंगे। हमें अपनी धरोहर और संस्कृति के उदाहरण को भी याद रखने की आवश्यकता हैं जैसे आर्युवेद हम इन्हें आधुनिक मेडिसिन की तुलना में नजरअंदाज करते है, जो ठीक नहीं है। पश्चिमी पूंजीवाद ने मुनाफाखोरी को ही सर्वोत्तम है, जबकि हमारी संस्कृति में समाजवादी पूंजीवाद की भावना थी। ऐसा पूंजीवाद जो समाज और नागरिकों के लिए प्रेरणा बने।

इस मौके पर संस्थान के अध्यक्ष अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि दत्तोपंत बहुआयामी व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। सारी विषमताओं के बाद भी आने संगठनों को उन्होंने शून्य से शुरू कर ऊंचाइयां और अलग पहचान दी। पहले चिंतन का केंद्र यूरोपीय था उसे उन्होंने भारतीय बना दिया। उन्होंने देश हित में कई बड़े संवैधानिक पदों को त्याग दिया। उनकी विचारधारा और चिंतन का अनुसरण समाज में आज की प्रमुख आवश्यकता है।

(Udaipur Kiran) तोमर

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