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विश्व पुस्तक मेले में ‘कला, सिने समीक्षा एवं फिल्म रसास्वादन की फ्रेम दर फ्रेम’ पुस्तक का लोकार्पण 

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में रविवार को ‘कला, सिने समीक्षा एवं फिल्म रसास्वादन की फ्रेम दर फ्रेम’ का लोकार्पण   के मौके पर फिल्म पत्रिका माधुरी के पूर्व संपादक विनोद तिवारी, रचनाकार अजय कुमार शर्मा समेत अन्य लोग।

नई दिल्ली, 10 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के अंतिम

दिन रविवार को फिल्म पत्रिका माधुरी के पूर्व संपादक विनोद तिवारी की पुस्तक, ‘कला, सिने समीक्षा एवं फिल्म रसास्वादन की फ्रेम दर फ्रेम’ का लोकार्पण किया गया।

लोकार्पण

समारोह में कथाकार पंकज बिष्ट, पटकथा

लेखक अशोक मिश्र, कवि एवं फिल्म निर्देशक दिनेश लखनपाल, सीएसडीएस के प्रोफेसर रविकांत, न्यू देहली फिल्म फाउंडेशन के सचिव

आशीष के सिंह, वरिष्ठ पत्रकार प्रताप सिंह, सिने रचनाकार अजय कुमार शर्मा, प्रोफेसर मुकुल रंजन झा और पुस्तक के

प्रकाशक हरिकृष्ण यादव उपस्थित रहे।

अजय कुमार शर्मा ने किताब की पृष्ठभूमि के बारे में

जानकारी देते हुए बताया कि यह पुस्तक हर सिनेमा प्रेमी, विशेष तौर पर युवा पत्रकारों, समीक्षकों और दर्शकों को सिनेमा देखने की नई समझ और दृष्टि विकसित

करने का अवसर देती है।

वरिष्ठ

कथाकार और समयांतर पत्रिका के संपादक पंकज बिट ने सिनेमा के सुनहरे

दौर और उसमें माधुरी तथा उसके संपादकों श्रद्धेय अरविंद कुमार तथा

विनोद तिवारी के योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि व्यावसायिक सिनेमा की पत्रिका

होते हुए भी माधुरी ने अच्छे सिनेमा का पक्ष लेते हुए सजग दर्शक तैयार किए। ऐसा ही

उनकी इस किताब को देखकर महसूस हुआ।

एनएसडी

के पूर्व छात्र और श्याम बेनेगल की कई फिल्मों की पटकथा लिख चुके प्रतिष्ठित पटकथा

लेखक अशोक मिश्र ने कहा कि इस पुस्तक के आने से उनका यह विश्वास और गहरा हुआ है कि

अभी भी सिनेमा को गंभीरता से देखने-परखने वाले लोग हैं। उन्होंने समग्र कलाओं के

रूप में सिनेमा देखने की प्रक्रिया की वकालत करते हुए इस पुस्तक को ‘मील का पत्थर’ कहा।

सीएसडीएस में असिस्टेंट प्रोफेसर

रविकांत ने कहा कि पुस्तक बहुत रोचक शैली में अच्छे उदाहरण देकर लिखी गई है। इसे

पढ़कर युवा पत्रकार सिनेमा को नए ढंग से समझेंगे और इससे उनका सिनेमा देखने का

नजरिया भी बदलेगा। पुस्तक जानकारी के तौर पर ‘गागर में सागर’ का

काम करती है।

वरिष्ठ

फिल्म निर्देशक दिनेश लखनपाल ने विनोद तिवारी के साथ अपने संस्मरण साझा करते हुए

कहा कि वह आरंभ से ही अच्छे सिनेमा के पैरोकार रहे हैं और सिनेमा की पारंपरिक सोच

से हटकर उसे नई दृष्टि से देखते रहे हैं। यह पुस्तक भी उनकी इस सोच का उत्कृष्ट

नमूना है।

न्यू

देहली फिल्म फाउंडेशन के सचिव आशीष के सिंह ने कहा कि यह पुस्तक सिनेमा को नए ढंग

से समझने-परखने की दृष्टि देती है। एनडीएफएफ का उद्देश्य भी हिंदी सिनेमा समाज को

जागरूक करने का है अतः हमें अपने प्लेटफार्म पर इस किताब का प्रचार-प्रसार करना

अच्छा लगेगा।

वरिष्ठ

पत्रकार एवं फिल्म अध्येता प्रताप सिंह ने कहा कि विनोद तिवारी के ‘माधुरी’ और बाद के अनुभव-आकाश भी इस कृति में

समा गए हैं। श्रेष्ठ समीक्षा की पूर्ण व्याख्या, विविध गुणवत्ता और रूढ़िबद्ध- लेखनी की दिशामूलक आलोचना के मार्फत

पाठक-जगत को सहज-सरल नाटकीय भाषा में हासिल हुई नवीन और अनूठी पूंजी के बरक्स इसे

विवेकसम्मत खजाना कहा जा सकता है।

संधीस

प्रकाशन के प्रमुख हरिकृष्ण यादव ने कहा कि विनोद तिवारी जैसे वरिष्ठ और बहुआयामी

पत्रकार की पुस्तक छाप कर हम बेहद गर्वित महसूस कर रहे हैं।

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(Udaipur Kiran) / Dhirender Yadav

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