देहरादून, 08 सितंबर (Udaipur Kiran) । दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से रविवार की शाम साहित्यकार डॉ. राज बख़्शी ‘गुमराह’ द्वारा रचित पुस्तक ‘एहसास-ए-मोहब्बत’ का लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भारतीय पुलिस सेवा से अवकाश प्राप्त वरिष्ठ अधिकारी एबी लाल ने उनकी इस कृति को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि राज बख़्शी ‘गुमराह’ की शायरी—कविताओं में प्यार मोहब्बत की भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति हुई है। मोहब्बत की भावनाओं व आह्वानों के विभिन्न रूपों को अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त करने में वह पूरी तरह सक्षम दिखाई देते हैं।
‘एहसास-ए-मोहब्बत’ डॉ. राज बक्शी के छह दशकों की कविताओं का नायाब संग्रह है जिसमें उन्होंने कविताओं, गजलों, उर्दू दोहों, गीतों और व्यंग्य के माध्यम से भावनाओं के विभिन्न रूपों को उकेरा है। इन कविताओं में व्यक्ति को खुशी, हंसी, हास्य व्यंग्य, उदासी, घृणा, भय, आश्चर्य और क्रोध का सायास अनुभव होता है। 155 पृष्ठों में कवि की भावनाओं और आह्वानों के विभिन्न रूपों से युक्त सभी प्रकार की भावनाएं हैं जिन्हें वह अपनी कुछ कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते हैं। पुस्तक का विशेष पक्ष यह है कि यह रचनाकार की लेखनी की वास्तविक क्षमता को हिंदी, उर्दू, पंजाबी, भोजपुरी और अंग्रेजी भाषाओं में सहजता के साथ चित्रित करने के साथ ही मानवीय भावनाओं को मुखरित करती है।
समाजसेवी डॉ. एस. फारूक ने राज बख़्शी ‘गुमराह’ को मुबारकबाद देते हुए कहा कि यह एक दिलवाले व्यक्ति हैं और एक दिलवाला ही दिल की बातों की कद्र कर सकता है। आप मोहब्बत करने वाले शख्स हैं और मोहब्बत ही आपने लिखा है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राम विनय सिंह ने वक्ता के तौर पर कहा कि दुनिया का कोई भी साहित्य ऐसा नहीं जहां प्रेम को जीवन की अभिव्यक्ति का अभिन्न विषय न बनाया गया हो। राज बख़्शी ‘गुमराह’ इस पुस्तक के माध्यम से अपनी मोहब्बत का पैगाम को अपने अशआर के माध्यम से समाज तक पहुंचाना चाहते हैं। इश्क—ए—मिजाजी के अनेक रंग इनकी लिखी गजलों में अनायास देखे जा सकते हैं।
पुस्तक के रचनाकार डॉ. राज बख़्शी ‘गुमराह’ ने पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि उर्दू एक प्यारी भाषा है। इसमें प्रेम, खुशी, निराशा, दुःख एवं अन्य मानवीय भावों—संवेदनाओं का बेहतर इजहार किया जाता है। हिंदी और उर्दू दोनों आम लोगों की प्रिय भाषा रही है। उन्होंने अपने प्रिय विषय मुहब्बत के बारे में कहा एक शेर है— ‘वक्त के साथ हर चीज बदलती रही, लेकिन एक दर्दे-मोहब्बत है जो पहले की तरह है’। सुपरिचित गजलकार अरूण भट्ट ने डॉ. राज बख़्शी ‘गुमराह’ की गजलों को अपना स्वर भी दिया था। कार्यक्रम के अंत में लोगों को डॉ. दलजीत कौर ने धन्यवाद दिया।
डॉ. बख्शी को किशोर उम्र में पंद्रह वर्ष की आयु में अंग्रेजी में कविताएं लिखने की प्रेरणा मिली, उन्होंने जब एक बार देहरादून के परेड ग्राउंड में पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का भाषण सुना था। उस दौरान उनकी कविताओं की बहुत सराहना हुई। इस प्रोत्साहन से प्रेरित होकर डॉ. बख्शी ने अपनी काव्य यात्रा सतत आज भी 80 साल की उम्र तक जारी रखी है। वह ओएनजीसी में इंजीनियर अधिकारी के तौर पर अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दे चुके हैं।
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(Udaipur Kiran) / कमलेश्वर शरण